गरीबी का कोई विशेष वर्ण ,जाति ,वर्ग नहीं होता। किन्तु गरीबी और गरीबों की एक खास छबि हमारे दिमाग में बन गयी है ।1 गरीब किसान2 गरीब मजदूर3.कुछ अन्य तथाकथित निम्न वर्ग।ये कुछ उदाहरण हैं।समझ में नहीं आता आम चुनाव दर चुनाव किसान गरीब क्यों होता जाता है ?जबसे मैंने चुनाव का मतलब जाना चुनाव के कुछ नियमित और नियत मुद्दे देखता आ रहा हूँ। इनमें गरीबी, बेरोजगारी और मंहगाई प्रमुख हैं। अगर पिछले कई दसकों में इनमें कोई बदलाव नहीं आया तो इन मुद्दों का सच क्या है ?गरीब किसान सुनकर खराब लगता है। मंहगाई बेमानी लगती है अगर जमाखोरी या अधिकतम मुनाफा कमाने की वजह से न हो। गरीब मजदूर सुनकर कर भी अजीब लगता है। इन सभी मुद्दों में अब बदलाव आना चाहिए।न तो सभी किसान गरीब होते हैं न सभी मजदूर. इनको को गरीब वर्ग में गलत वर्गीकरण के कारण शामिल किया जाता हैं। इन धारणाओं और व्यवस्थाओं की पृष्ठभूमि में जो महत्व पूर्ण कारण है वह है शारीरिक श्रम की वांछित प्रतिष्ठा का न होना। एक मजदूर की निम्नतम मजदूरी। अनेक अन्य व्यवसाय में लगे लोगों से कम न होगी। किन्तु अगर वह शारीरिक श्रम का कार्य नहीं है तो उन्हें मजदूरों की स्थिति से ऊपर की स्थिति में रखा जाता है; और समाज में बहुत से गरीब लोग हैं किन्तु कुछ छाद्म गरीब भी है जिनका गरीब दिखने में निहित स्वार्थ है।जहां तक मजदूरों की बात है। कार्लमार्क्स या मक्सिम गोर्की से लेकर आजतक उन्हें संगठित करने वाले या उनके लिए आवाज उठाने वालों की कमी नहीं रही।जिन स्थानों पर कम्युनिस्ट विचार धारा प्रबल रही वहाँ तो कई अवसरों पर मजदूर अन्य वर्गों, विशेष कर मध्यम वर्ग का शोषण करते मालूम होते है।उनका व्यवहार उद्दंड होता है और कम कामकर अधिक पैसे लेने की प्रवृत्ति होती है। उदाहरण के लिये केरल की नोकु कुली की पृथा, यानि देख्नने की मजदूरी।भारत में कुछ स्थानों पर तो मजदूरों के दुर्व्यवहार के कारण उद्योगपति उद्योग लगाने से कतराते है।हर वर्ग के गरीबों को सुहानुभूति और सहयोग मिलना चाहिए। श्रमिकों को तय वेतन मिलना चाहिए। मेरा ये आलेख किसी के भी खिलाफ नहीं है। मजदूरों के खिलाफ भी नहीं। कभी कहीं जो मैंने देखा और महसूस किया वह लिख दिया।ये मेरे निजी अनुभव हैं जो बहुत सीमीत हो सकते है। बड़े पैमाने पर अध्ययन करने पर भिन्न निष्कर्ष निकल सकते है। लेकिन जो कमियाँ इस आलेख में बताई हैं उनमें सुधार की आवश्यकता तो है ।