राजनैतिक पत्रकारिता
पहले में यह बताना चाहता हूँ कि मैं
मीडिया का सम्मान करता हूँ और इसकी अनिवार्यता, उपयोगिता और सार्थकता में
कोई संदेह नहीं है।
पत्रकारों का काम कभी बहुत कठिन लगता है और कभी
बडा आसान।
आजकल पत्रकारों के नाम से सिर्फ राजनीति
के क्षेत्र में काम करने वाले पत्रकार ही ध्यान में आते। कह सकते है पत्रकारिता
राजनैतिक पत्रकारिता का पर्याय लगती है।
पत्रकारों का काम बहुत मुश्किल लगता है जब
वे निष्पक्ष काम करते है।
आसान लगता है जब वे किसी एजेंडे के तहत
काम करते हैं।
मुश्किल लगता है जब राजनैतिक समाचारों को
मसाले दार बनाने के लिए जहां तहां से विवादास्पद बयान इकट्ठे करते हैं।
आसान लगता है जब हर बयान को विवादास्पद
बताते हैं । उनके शब्दकोश में बयान का मतलब ही विवादित बयान होता है।
मुश्किल लगता है जब कुछ दिनों तक कोई
विवादित बयान न दे और साक्षात्कार में कोशिश के बावजूद वे किसी बड़े नेता के मुख से
विवादित बयान न निकलवा सकें।
आसान लगता है जब माइक ले जाकर किसी साक्षी
महाराज, ओवैसी,सिब्बल दिग्विजय,या मणिशंकर के मुंह के सामने लगा
देते है ।
अन्य आसानियां और दुश्वारियाँ
फिर कभी।