ध्यान के आसन (Posture)
ध्यान एक ऐसी
सरल प्रक्रिया है कि जिसका आनन्द हर कोई ले सकता है | जैसा कि पहले भी बता चुके
हैं – ध्यान के लिए शान्तचित्त होकर सुविधाजनक, आरामदायक और स्थिर आसन में बैठ
जाएँ | शरीर को स्थिर करें, श्वास प्रक्रिया को स्थिर और लयबद्ध करें, और मन को
स्थिर तथा केन्द्रित करें | ध्यान की इन तीनों प्रक्रियाओं के विषय में विस्तार से
चर्चा करने की आवश्यकता है –
·
शरीर की
स्थिति किस प्रकार होनी चाहिए कि वह ध्यान के समय विश्रान्त, स्थिर और
सुविधापूर्ण स्थिति में रह सके |
·
श्वास
प्रक्रिया को स्थिर और लयबद्ध करने की क्या आवश्यकता है और
·
इसे किस
प्रकार किया जा सकता है |
·
मन को स्थिर
और लक्ष्य पर किस प्रकार केन्द्रित किया जाए कि ध्यान की स्थिति स्वतः प्राप्त की
जा सके |
ये तीन
स्थितियाँ चेतना को शरीर के बाह्य स्तर से बहुत गहरी अन्तःचेतना अथवा सूक्ष्म स्तर
तक ले जाती हैं | सबसे पहले शरीर की स्थिति...
ध्यान के लिए बैठने के आसन :
ध्यान के लिए
उपयुक्त आसन में बैठने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है – आसन स्थिर हो, दृढ़ हो, आरामदायक हो
और सुविधाजनक हो | यदि ध्यान के समय शरीर इधर उधर हिलता डुलता झूलता रहेगा, शरीर में
कहीं खिंचाव या दर्द होगा तो ध्यान के अभ्यास में निश्चित रूप से बाधा पड़ेगी | कुछ
लोग समझते हैं कि ध्यान के लिए पद्मासन जैसे कठिन आसन में बैठना आवश्यक है |
किन्तु ऐसा नहीं है | ध्यान के आसन के लिए केवल एक बात का ध्यान रखने की आवश्यकता
है कि आप ऐसे आसन में बैठें कि आपका सर, गर्दन और धड़ एक सीध में हों जिससे आपको श्वास लेने में
सुविधा हो और आप श्वास के आवागमन को अपने उदर में अनुभव कर सकें |
सिर, गर्दन और धड़ की स्थिति :
ध्यान के सभी
आसनों में सिर और गर्दन बिल्कुल बीच में होने चाहियें ताकि गर्दन न तो इधर उधर झूल
सके और न ही एक ओर को झुक सके | सिर को गर्दन से सहारा मिलना चाहिए और कन्धों अथवा
गर्दन में किसी प्रकार का खिंचाव हुए बिना गर्दन कन्धों के ऊपर स्थिर रहे | चेहरा
सामने की ओर और नेत्र धीरे से बन्द हों | नेत्रों को आराम से बिना किसी दबाव के
अपने आप बन्द होने दें | दुर्भाग्य से कुछ लोगों को बताया जाता है कि ध्यान की
प्रक्रिया में सिर के ऊपर एक विशेष बिन्दु पर एकटक देखना है | किन्तु ऐसा करने से
नेत्रों की माँसपेशियों में खिंचाव पड़ता है और कभी कभी तो सिर में दर्द तक हो जाता
है | योग की प्रक्रिया में ऐसे कुछ अभ्यास हैं जिनमें नेत्रों को किसी एक बिन्दु
पर स्थिर करना होता है, किन्तु ध्यान की प्रक्रिया में ऐसा नहीं है | चेहरे की
माँसपेशियों पर कोई खिंचाव डाले बिना उन्हें ढीला छोड़ देना है | मुँह भी बिना किसी
प्रयास अथवा दबाव के आराम से बन्द होना चाहिए | श्वास का आवागमन नासारन्ध्रों (Nostrils) से होना
चाहिए |
कन्धों, भुजाओं और हाथों की स्थिति :
ध्यान के सभी
आसनों में आपके कन्धे और हाथ ढीले छोड़े हुए (Relaxed) हों और आराम से आपके घुटनों पर रखे हुए हों |
आपकी कलाई इतनी ढीली पड़ी हुई हो कि अगर कोई उसे उठाना चाहे तो बिना किसी प्रयास के
उठा सके | आपका अँगूठा और तर्जनी अँगुली हलके से कुछ इस तरह जुड़े हुए हों कि उनका
घेरा बन जाए, जिसे आप ऐसे
समझ सकते हैं कि एक परिधि है जिसके भीतर ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है |
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/11/27/meditation-and-its-practices-20/