@@@@@@@@ कड़वा सच @@@@@@@@
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माँ कहे मुझे बेटा प्यारा , बेटा कहे मुझे माता प्यारी |
यह सब कहने की बातें,स्वार्थ की है यह दुनिया सारी ||
किस पत्नी ने खाना छोड़ा ,निज पति के अनशन पर |
नजर रहती है हर व्यक्ति की ,भोगों के गुलशन पर ||
भृतहरि जैसा महान राजा,क्या बनता कभी सन्यासी ?
नहीं आती अगर सामने , दुनिया की उलटबासी ||
कितना प्रेम था रानी से उसको,लगती थी प्राणों से प्यारी |
पर रानी को तो रास आयी थी ,एक पराये पुरुष की यारी ||
प्रियतम व्यक्ति वो रानी का ,था घुड़शाला में नौकर |
नौकर प्रेमी था नगरवधू का,रानी का चहेता होकर ||
सन्त से मिले अमरफल को,दे दिया राजा ने रानी को |
प्राणप्रिय उसकी रानी ने , दे दिया अपने जानी को ||
जानी ने दिया नगरवधू को ,अपने दिल की रानी को |
नगरवधू ने दिया राजा को,महापुरुष स्वाभिमानी को ||
भेद खुला जब रानी का,राजा को वेराग हो गया |
राजपाठ सब छोड़छाड़ कर,साधना में खो गया ||
अज्ञान के अन्धेरे में,जिसे प्रेम समझते हम |
प्रेम वो होता नहीं , पर होता प्रेम का भ्रम ||
प्रेम का मतलब त्याग है,और त्याग कोई करता नहीं |
बिना स्वार्थ के कोई व्यक्ति,दुःख किसी के हरता नहीं ||
प्राणप्रिय लगने वाली ,बन जाती प्राणों की प्यासी |
सिर पर चढ़ बैठती पल में,निजहित चरणों की दासी ||
पराये भी स्वार्थ साधे तो , लगते अपनों से प्यारे |
टूटने पर स्वार्थ का रिश्ता,अपने भी हो जाते खारे ||
दुनिया की यह कटु सच्चाई,नहीं कोरा उपदेश है |
ज्ञानचक्षु खुले रखना ,यह कहता कवि दुर्गेश है ||
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