@@@@@@@ प्रकृति-वधु का सिंगार @@@@@@@
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पिया बसन्त के स्वागत खातिर ,प्रकृति-वधु ने श्रृंगार किया |
प्रदेशवासी पिया बसन्त ने ,जब आने का सन्देश दिया ||
हरी -भरी मखमली सेज को ,सुमनों से सजा दिया |
शबनम के मोतियों को ,धरा -सेज पर लगा दिया ||
मन बहलाने अपने पिया का ,नहीं रखी थी कसर कोई |
देख अपने को जल -दर्पण में ,वधु-प्रकृति खुश होई ||
देह देख कर अपनी उस में ,मुख पर लाज की लाली छायी |
आँखें मूँद गयी शर्म से , जब रासलीला की याद आयी ||
पहाड़ रुपी उरोज उसके ,समा नही रहे थे आँचल में |
मद -मस्त करती मादक राग ,गूंज रही थी कल-कल में||
शरमाते हुए लजा रही थी ,देख फूटता निज यौवन |
छेड़ -छाड़कर रहा था उससे ,नटखट आशिक चंचल पवन ||
प्रकृति-वधु का देख यौवन ,प्रेम -मद बसन्त पे छाया |
ब्रह्मचारी संतों को भी ,पसन्द श्रृंगार ये था आया ||
मधु-मास मनाता यह जोड़ा ,जब आता फागुन का महीना |
रास रचाते दोनों ऐसी ,कि न रहता कोई मिलन बिना ||
प्रकृति -बसंत का मिलन देख ,मानव पर मस्ती छाती |
इसी कारण प्रदेशी पिया को ,गौरी की याद सताती ||
प्रकृति -बसंत के मिलन-मौसम में ,झूम उठती दुनिया सारी |
नाच नचाती यह कुदरत सबको , जो है नीली छतरी धारी ||