@@@@@@@ तन की वसीयत @@@@@@@
जीवन का है नहीं भरोसा , पर मौत कभी भी आ सकती |
जीने की इच्छा मर चुकी ,अब जान कभी भी जा सकती ||
जीया मैं अपनों के खातिर, पर आया नहीं अपनों को रास |
अपनी बेकद्री के चलते , रहने लगा हूँ मैं उदास ||
जीते जी नहीं कर सका मैं, बेगानों के लिए कुछ भी खास |
पर मर कर देना चाहता हूँ मैं, उन्हें खुशियों की ये सौगात ||
किसी के तन में मेरा दिल धड़के ,किसी में रहे गुर्दा मेरा |
मेरे तन का हर अंग पहने ,परोपकार का सुन्दर सेहरा ||
लिख कर अपने तन की वसीयत, देहदान का संकल्प करता हूँ |
मैं हूँ घोर नास्तिक पक्का ,पर नैतिकता पर चलता हूँ ||
मेरी विनती उस व्यक्ति से ,जो देखे शव मेरा सबसे पहले |
पात्र अस्पताल को सूचित कर वो, बुलवाले कर्मी भले भले ||
देहदान की बात बता कर, वो शव मेरा उन्हें सुपुर्द करे |
परोपकार का ये काम करके, ऊँचा अपना कद करे ||
मेरे सभी अंग निकालें , डॉक्टरों से है निवेदन मेरा |
आँखें लगा कर दोनों मेरी, दूर करें वे कुछ अँधेरा ||
किसी को दे वे गुर्दा मेरा, और किसी को मेरा जिन्दा दिल |
हर अंग मेरा लगे किसी को ,यह है मेरी आखिरी विल ||
नहीं काम के हो दिल और गुर्दे, तो शव शोधियो को सौंप दें |
सीख कर तन की चीरफाड़ से ,अवशेषों में अग्नि घोंप दें ||
परिजनों और साथियों से, यह नेक विनती है मेरी |
शौक न मनाएं मेरी मौत का ,न करें शुभ काम में देरी ||
न तो अर्थी बांधें मेरी , न कोई संस्कार करें |
न बुलाएं सम्बन्धियों को, न ही लोकाचार करें ||
साथी ,सम्बन्धी ,परिजन मेरे ,न छुएं मेरे मुर्दा तन को |
न उठाएं भार लाश का ,समझ मेरे पागलपन को ||
न करें वो कर्मकांड कोई, न मेरा पिंडदान करें |
मेरी इस वसीयत का, वे भी पूरा सम्मान करें ||
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