@@@@@@ सकारात्मक सोच का चमत्कार @@@@@@@
नौकरी और जीवन में कई बार हमें निन्दा और आरोपों का सामना करना पड़ता है| हालाँकि की सन्त कबीर ने निन्दा को सकारात्मक रूप से लेने की प्रेरणा देते हुए लिखा है -"निन्दक नियेरे राखिये,आनन्द कुटी छवाय |बिन साबुन बिन तेल के,मैल दूर हो जाय || "पर सच तो यह है की निंदा और आरोप किसी को भी सहन नहीं होते ,विशेष रूप से तब जबकि वे झूठे हो | आरोपों से निपटने के 5 ढंग हैं |प्रथम ढंग है -"जैसे को तैसा" यानी कि यदि कोई आपको चोर बताए तो आप भी उसे चोर बता कर हिसाब बराबर कर सकते हैं | दूसरा ढंग है-"ईंट का जबाव पत्थर से देना "यानी यदि कोई आपको चोर बताए तो आप उसे डाकू बता कर उसका आक्रमक प्रत्युत्तर दे सकते हैं |तीसरा ढंग है-"उपेक्षा करना"यानी की यदि कोई आप पर झूठा आरोप लगाये तो आप आरोप लगाने वाले की उपेक्षा उसी तरह कर सकते हैं जैसे गाँव की गली से गुजरता हाथी कुत्तों के भौंकने पर कुत्तों की करता है | पर ऐसा करना हर किसी के वश में नहीं होता | चौथा ढंग है -"आरोपों को हल्के में लेना" यानी कि यदि कोई आपको चोर कहता है तो चाहे उस सन्दर्भ में आप चोर नहीं हैं जिस सन्दर्भ में आपको चोर कहा गया है | पर मन में विचार कीजिये कि क्या आपने जीवन में कभी भी किसी भी तरह की चोरी नहीं की है?यह विचार करने पर आपको याद आएगा की आपने किसी का चित चुराया है |चाहे आपने जिसका चित चुराया है उसके लिए आप परमप्रिय रहे हों | पर आप चोर तो हो ही गये ना | फिर आप यह सोच सकते है कि चोर कौन नहीं है ? इस तर्क के समर्थन में लिखे गये एक गीत के मुखड़े में मेरे ये छन्द जोड़े जा सकते हैं-"कोई धन चोर, कोई मन चोर ,कोई काम चोर ,कोई दाम चोर | पर है दुनिया में सब चोर ही चोर || कोई चित चोर ,कोई वित्त चोर ,कोई जर चोर, कोई नजर चोर | पर है दुनिया में सब चोर ही चोर ||इस तरह अपने पर लगे झूठे आरोपों को आप वैसे ही उड़ा सकते है जैसे कोई सिगरेट का शौकीन धुंएँ के छल्लें हवा में उड़ाता है | आरोपों का सामना करने का पांचवां ढंग बहुत ही अनूठा व अनुकरणीय है | जब आप पर कोई झूठा आरोप लगता हैतो आप आत्म निरीक्षण की दृष्टि से लैस हो कर सच्चाई के मोती की तालाश में अपने मन के सागर की गहराई में उतर जाइये |आपके थोड़े से प्रयासों से ही सच्चाई का मोती आपके हाथ लग जायेगा | इस अनुभव से मैं खुद गुजर चूका हूँ | उसे मैं आपके साथ सांझा करना चाहता हूँ | लगाया गया आरोप चाहे मूल सन्दर्भ में झूठा हो पर वो किसी और सन्दर्भ में सच हो सकता है और उसे उसी सन्दर्भ में ग्रहण करके अपना सुधार करना चाहिए | हालाँकि यह सच है कि झूठा,निराधार और गम्भीर आरोप लगाने वाला व्यक्ति निकृष्ट होता है परन्तु यदि वह व्यक्ति झूठे आरोपों के झटके से हमारे ज्ञान चक्षु खोल दे तो उस निकृष्ट व्यक्ति का हमें अहसानमंद होना चाहिए | आरोपों से निपटने के पांचवें ढंग का मेरा अनुभव गद्य रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है -
@@@@@@ सबसे बड़ा बेईमान @@@@@@
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एक निकृष्ट व्यक्ति ने मुझ को,सबसे बेईमान बताया |
झूठा यह आरोप सुनकर , गुस्सा बहुत ही आया ||
नहीं कभी रिश्वत खायी , न किया कोई घोटाला |
मेरे उज्जवल चरित्र पर,न लगा कोई दाग काला ||
बहुत कोसा उस व्यक्ति को , पर नहीं चैन मिल पाया |
पर जब खुद को जाँचा-परखा,सच समझ में तब आया ||
पहला कर्तव्य हर व्यक्ति का ,अपने तन का रखना ध्यान |
पर मैंने हक़ मारा है तन का ,हुआ मुझ को यह अन्तर्ज्ञान ||
काम लिया मैंने तन से पूरा ,पर भूखा रखा आधा जिसको |
मुझ से बड़ा बेईमान आदमी ,कोई कहेगा आखिर किसको ?|
आया मैं इस दुनिया में , फैलाने को ज्ञान-प्रकाश |
हार बैठा था खुद हौसला, ढो रहा था खुद की जिन्दा लाश ||
जिस ज्ञान पर हक़ जनता का , दबा रखा था मैंने उसको |
मुझ से बड़ा बेईमान आदमी,कोई कहेगा आखिर किसको ?|
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