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कुछ सज्जनों की जिन्दगी,होती खुली किताब है |
ऐसे सज्जनों के खातिर ,छोटा हर खिताब है ||
मत कर तू दंद-फंद कोई , ओ चालाक इन्सान,
एक दिन हर चालाकी का ,देना पड़ता हिसाब है ||
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27 जुलाई 2016
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कुछ सज्जनों की जिन्दगी,होती खुली किताब है |
ऐसे सज्जनों के खातिर ,छोटा हर खिताब है ||
मत कर तू दंद-फंद कोई , ओ चालाक इन्सान,
एक दिन हर चालाकी का ,देना पड़ता हिसाब है ||
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आदर्शवादी,नास्तिक लेखक /कवि/समाज सुधारक,आदर्शवादी,नास्तिक लेखक /कवि/समाज सुधारक,आदर्शवादी,नास्तिक लेखक /कवि/समाज सुधारक,आदर्शवादी,नास्तिक लेखक /कवि/समाज सुधारकD