जानवर सा आदमी है अब ,और आदमी सा है जानवर
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भौंक -भौक कर एक कुता ,दूजे को दे रहा था गाली |
बच्चे देख रहे थे उनको , बजा -बजा कर ताली ||
साला आदमी कहीं का ,तू भगा ले गया मेरी साली |
तू कुता नहीं,आदमी है ,करतूत है जिसकी काली ||
कुते द्वारा कुते को ही ,दी गयी आदमी की वो गाली |
मेरे कोमल कवि-ह्रदय ने,नहीं हँसी में थी टाली ||
आदमी के घोर पतन की , थाह मैंने थी पा ली |
और एक कहानी,कविता में ,मैंने यूँ लिख डाली ||
राजनगर में रहते थे , बाबू राम भरोसे लाल |
निवृत हुए जब नौकरी से , अच्छे थे उनके हाल ||
डॉक्टर था बेटा उनका , जो चला गया विदेश |
पत्नी के संग बीता रहे थे ,वे जिन्दगी के दिन शेष ||
पत्नी रामप्यारी उनकी ,जब हो गयी राम को प्यारी |
तब जीना राम भरोसे का ,हो गया बहुत ही भारी ||
घर की देखभाल हेतु , तब रखा था नौकर एक |
भरोसा किया था उस पर , समझ आदमी नेक ||
राम भरोसे ने अपने घर पर ,एक कुता भी था पाला |
सोता था जो उनके कमरे में ,था उनका वो रखवाला ||
उनका अपना बेटा था ,पर नहीं सुख था उसका |
नौकर को भी बेटा समझा ,मैला मन था जिसका ||
सुख-सुविधाएँ दी नौकर को,मान कर उसको अपना |
लूट कर उनकी दौलत को , जो चाहता था टपना ||
अमीर है राम भरोसे , यह जानता था नौकर |
लूटना चाहता था उनको ,बीज विश्वास का बोकर ||
सोच रहा था नौकर , कि कैसी तरकीब अपनाऊँ |
कि शक हो डकैती का ,पर मैं साफ बच जाऊँ ||
एक रात उस नौकर ने,भरोसे पर हमला कर दिया |
राम भरोसे की चीख ने , कुते में क्रोध भर दिया ||
नौकर की पिंडली में उसने ,अपने दांत गड़ा दिये |
चाक़ू छूट गया हाथ से ,तो कुते से पंजे लड़ा लिये||
पिण्ड छुड़ा कर कुते से , नौकर वहाँ से भाग गया |
चीख -पुकार सुनकर उनकी,मोहल्ला सारा जाग गया ||
घाव गहरा नहीं था तन का ,सो चन्द दिनों में भर गया |
उस दिन से आदमी पर , भरोसे का भरोसा मर गया ||
कहते हैं वे जो सबको ,वो सुन ले आप भी मान्यवर |
जानवर सा आदमी है अब ,और आदमी सा है जानवर ||
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