माँ दुर्गा की उपासना के
लिए पूजन सामग्री - नारियल
साम्वत्सरिक नवरात्र चल रहे हैं
और समूचा हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना में बड़े उत्साह,
श्रद्धा और आस्था के साथ लीन है | इस अवसर पर कुछ मित्रों के आग्रह पर माँ दुर्गा
की उपासना में जिन वस्तुओं का मुख्य रूप से प्रयोग होता है उनके विषय में लिखना
आरम्भ किया है | पारम्परिक रूप से जो सामग्रियाँ माँ भगवती की उपासना में प्रमुखता
से प्रयुक्त होती हैं उनका अपना प्रतीकात्मक महत्त्व होता है तथा प्रत्येक सामग्री
में कोई विशिष्ट सन्देश अथवा उद्देश्य निहित होता है...
अभी तक हमने कलश तथा कलश स्थापना
और वन्दनवार तथा यज्ञादि में प्रयुक्त किये जाने वाले आम्रपत्र और आम्र वृक्ष की
लकड़ी, दीपक तथा पुष्पों इत्यादि के विषय में लिख चुके हैं... अब आगे...
घट स्थापना में तथा पूजा
कार्य में नारियल का विशेष महत्त्व होता है | नारियल के गुणों से तो हम सभी परिचित
हैं | शीतल तथा स्निग्ध गुण धर्म इसका होता है | माना जाता है कि इसमें सभी देवों
का वास होता है तथा देवी को यह अत्यन्त प्रिय होता है – इसीलिए नारियल को संस्कृत में श्रीफल कहा
जाता है | किसी भी शुभकार्य के आरम्भ में नारियल तोड़ने की प्रथा है – नारियल के बाह्य आवरण को
यदि अहंकार का प्रतीक तथा भीतरी भाग को पवित्रता और शान्ति का प्रतीक माना जाए तो
इसका महत्त्व स्वतः ही समझ में आ जाता है | पूजा की समाप्ति पर नारियल तोड़ने का भी
यही अभिप्राय है कि व्यक्ति ने अपने अहंकार को समाप्त कर दिया | नारियल में ब्रह्मा, विष्णु,
महेश तीनों देवों का वास माना जाता है |
कुछ लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि एक
समय धार्मिक कार्यों में मनुष्य और पशुओं की बलि सामान्य बात थी | कहते हैं उस समय
आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय परम्परा को तोड़ा और मनुष्य अथवा पशु के स्थान पर नारियल
अर्पित करने की प्रथा आरम्भ की | नारियल देखा जाए तो मनुष्य के मस्तिष्क से मेल
खाता है | नारियल की जटा की तुलना मनुष्य के बालों से, कठोर कवच की तुलना मनुष्य की
खोपड़ी से, भीतर के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग़ से नारियल पानी की तुलना रक्त से
की जा सकती है |
नारियल से पूर्व कलश में जो
दूर्वा, कुश, सुपारी, पुष्प आदि डाले जाते हैं उनमें भी यही
भावना निहित होती है कि हमारे भीतर दूर्वा जैसी जीवनी शक्ति बनी रहे, कुश जैसी प्रखरता हमारे ज्ञान में विद्यमान रहे,
सुपारी के समान गुणों से युक्त स्थिरता रहे तथा पुष्प के सामान सर्वग्राही गुणों
का निवास हमारे मन में हो जाए |
इसके अतिरिक्त सुपारी को
सभी देवों का प्रतीक भी माना जाता है और इसीलिए नवग्रह उपासना में नवग्रहों के
प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है | गणेश जी का रूप भी सुपारी को माना जाता है और
गणेश जी की प्रतिमा न होने पर सुपारी में मौली बाँधकर उसे ही गणेश जी मानकर पूजा
की जाती है | किसी भी अनुष्ठान में जहाँ पति पत्नी दोनों का होना अनिवार्य हो वहाँ
यदि एक उपस्थित न हो तो उसके स्थान पर भी सुपारी को रखने की प्रथा है |
नवरात्रों के पावन नौ दिनों
में दुर्गा माँ के नौ स्वरूपों की पूजा उपासना बड़े उत्साह के साथ की जाती है –
चाहे चैत्र नवरात्र हों अथवा शारदीय नवरात्र | माँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए
और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष सामग्रियों से उनकी पूजा की जाती
है | यद्यपि माँ क्योंकि एक माँ हैं तो साधारण रीति से की गई ईशोपासना भी उतनी ही सार्थक होती
है जितनी कि बहुत अधिक सामग्री आदि के द्वारा की गई पूजा अर्चना | साथ ही जिसकी जैसी
सुविधा हो, जितना समय उपलब्ध हो, जितनी सामर्थ्य हो उसी के
अनुसार हर किसी को माँ भगवती अथवा किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना उपासना करनी
चाहिए... वास्तविक बात तो भावना की है... भावना के साथ यदि अपने पलंग पर बैठकर भी
ईश्वर की उपासना कर ली गई तो वही सार्थक हो जाएगी...