बरखा की सुहानी रुत में
मेघों की बात न हो, उनकी प्रिय सखी दमयन्ती की बात न हो, प्रकृति के कण को में
व्याप्त मादकता की बात न हो - ऐसा तो सम्भव ही नहीं... निश्चित रूप से कोई योगी या
कोई विरह वियोगी ही होगा जो इस सबकी मादकता से अछूता रह जाएगा... तो प्रस्तुत है
हमारी आज की रचना "मेघ इठलाए रहे हैं"... सुनने के लिए वीडियो के लिंक पर क्लिक करें... कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा...