फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र
ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों पर चर्चा के क्रम में अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा और मघा नक्षत्रों के नामों पर बात करने के पश्चात आज चर्चा करते हैं फाल्गुनी और हस्त नक्षत्रों के नामों की निष्पत्ति तथा इनके अर्थ के विषय में |
फाल्गुनी :-
नक्षत्र मण्डल में दोनों फाल्गुनी नक्षत्र ग्यारहवें और बारहवें क्रम में आते हैं | फाल्गुन माह में ये दोनों फाल्गुनी नक्षत्र आते हैं इसीलिए इस माह का नाम फाल्गुन पड़ा है | यह माह फरवरी और मार्च के मध्य आता है | इन्द्र का भी एक नाम फाल्गुनी है | दोनों फाल्गुनी – पूर्वा फाल्गुनी और उतर फाल्गुनी – नक्षत्रों में प्रत्येक में दो दो तारे होते हैं | वसन्त ऋतु भी इसी माह में आती है अतः उसे भी फाल्गुन अथवा लौकिक भाषा में फागुन या फाग कहा जाता है | इस नक्षत्र की व्युत्पत्ति फल्गु शब्द से हुई है, जिसके शाब्दिक अर्थ हैं रस और बल का अभाव, निरर्थक, लघु, क्षुद्र, बहुत थोड़ा इत्यादि | गूलर के वृक्ष को भी फल्गु कहा जाता है | अर्जुन का जन्म फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था इस कारण उन्हें भी फाल्गुनी ही कहा जाने लगा | गुरु का जन्म नक्षत्र भी फाल्गुनी होने के कारण गुरु अर्थात बृहस्पति को फाल्गुनीभव कहा जाता है | इन दोनों नक्षत्रों के अन्य नाम तथा उसके अर्थ हैं भग अर्थात भाग्य (Destiny), सौभाग्य (Good Fortune), सम्पन्नता, गरिमा, गुण, आदर्श आदि | प्रयास करने के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है | लाल रंग के लिए भी फाल्गुनी शब्द का प्रयोग किया जाता है | एक नाम योनि भी है | झरने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है | पितृगणों के प्रमुख तथा द्वादश आदित्यों में से एक देवता “अर्यमा” के लिए भी भग शब्द का प्रयोग होता है |
हस्त :-
यह नक्षत्र मण्डल का तेरहवाँ नक्षत्र है | हस्त अर्थात हाथ तथा हाथी की सूँड | इस नक्षत्र में पाँच तारे होते हैं | इसके अन्य नाम हैं रवि, कर, सूर्य | फरवरी और मार्च के महीनों में फाल्गुन माह में दोनों फाल्गुनी नक्षत्रों के बाद यह नक्षत्र आता है |
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