स्वाति नक्षत्र
नक्षत्रों की वार्ता को ही और आगे बढाते हैं | ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों के विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, दोनों फाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्रों के विषय में हम बात कर चुके हैं | आज चर्चा करते हैं स्वाति नक्षत्र के नाम और उसके अर्थ के विषय में |
यह नक्षत्र एक अत्यन्त ही शुभ नक्षत्र माना जाता है | नक्षत्र मण्डल में स्वाति नक्षत्र पन्द्रहवाँ नक्षत्र है | चित्रा नक्षत्र की ही भाँति इस नक्षत्र में भी स्वाति नाम का एक ही तारा होता है जिसके नाम पर इस नक्षत्र का नाम पड़ा है | सूर्य की पत्नी का नाम भी स्वाति है | तलवार के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है | लोकमान्यता है कि सीपी के मुख में जब स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँदें पड़ती हैं तो वे मोती बन जाती हैं और यही मोती असली मोती होता है जो निश्चित रूप से बहुत कम मात्रा में उपलब्ध होता है | कहने का अभिप्राय यह है कि असली मोती बनाया नहीं जा सकता अपितु स्वतः उत्पन्न होता है और अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही विकसित भी होता है | इसी प्रकार मूँगा भी स्वतः उत्पन्न वृक्ष से प्राप्त एक फल है – अर्थात इस वृक्ष की उत्पत्ति या प्रजनन स्वतः ही होता है तथा इसका विकास भी स्वतः ही होता है – न इसे किसी प्रकार बनाया जा सकता है न ही इसके विकास में किसी प्रकार की खाद पानी आदि से सहायता की जा सकती है | जिस आकार में भी और जितना अधिक एक मूँगे को अथवा मोती को बढ़ना होगा वह उतना ही बढ़ेगा | इस प्रकार स्वाति शब्द प्रजनन क्षमता तथा विकास और आत्म निर्भरता का भी द्योतक है |
चातक पक्षी के विषय में कहा जाता है कि वह वर्ष भर स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँदों की प्रतीक्षा में धैर्यपूर्वक आकाश की ओर ताकता रहता है और स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूँदों का पान करके ही अपनी प्यास बुझाता है और सन्तुष्टि का अनुभव करता है | इस प्रकार स्वाति शब्द धैर्य और सन्तुष्टि का भी पर्याय बन जाता है | हमारे कवियों ने उपमान के रूप में इस कथा के बड़े ही सुन्दर प्रयोग किये हैं | स्वेनैव अतति या सा स्वाति – स्वभाव से भ्रमणशील, स्वतन्त्र अथवा स्वच्छन्द आचरण करने वाला | इस नक्षत्र के अन्य नाम तथा भाव हैं वायु | यह नक्षत्र भी चित्रा नक्षत्र की ही भाँति चैत्र माह में आता है जो मार्च और अप्रेल के मध्य पड़ता है |
संस्कृत ग्रन्थों में स्वाति शब्द को स्वतन्त्रता, कोमलता तथा तलवार आदि के लिए भी प्रयुक्त किया गया है | इन्हीं समस्त अर्थों से स्वाति नक्षत्र की विशेषताओं का भी कुछ भान हो जाता है | इसके अतिरिक्त हवा में झूलते हुए छोटे से पौधे को स्वाति नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है | छोटा सा पौधा बच्चों की भाँति मुलायम होता है – स्निग्ध होता है – और सम्भवतः इसीलिए स्वाति शब्द का प्रयोग कोमलता तथा स्निग्धता के पर्याय के रूप में भी किया जाता रहा है | साथ ही एक सत्य और इस नाम के साथ प्रतिध्वनित होता है – वह यह कि यदि वायु का वेग तेज़ हो तो इस नन्हे से पौधे को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए बहुत अधिक प्रयास करना पड़ता है | पवन के थपेड़े उसे इधर से उधर झुलाते रहते हैं किन्तु यह नन्हा सा पौधा अपनी पूरी शक्ति के साथ उस वायु वेग से संघर्ष करता है और अपना अस्तित्व बचाए रखने का प्रयास करता है | इस प्रकार स्वाति शब्द का प्रयोग संघर्ष तथा क्षमता के अर्थ में भी किया जाता है |
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