श्रवण
ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा
अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के
आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों
के विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, दोनों फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा,
ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ और उत्तराषाढ़ नक्षत्रों के विषय में हम बात कर चुके हैं
| आज चर्चा श्रवण नक्षत्र के नाम और उनके अर्थ के विषय में |
नक्षत्र मण्डल में श्रवण नक्षत्र बाईसवाँ नक्षत्र है | श्रु
धातु से श्रवण शब्द की निष्पत्ति हुई है | श्रु का अर्थ
होता है सुनना – श्रवण करना | सुनकर कुछ सीखने के लिए भी
श्रवण शब्द का प्रयोग किया जाता है | किसी त्रिकोण के किनारों
को भी श्रवण कहा जाता है | श्रवण यानी कान, श्रौत सूत्र ये सब श्रु धातु से ही प्रतिपादित हैं | वैभव, प्रसिद्धि आदि के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है | इस नक्षत्र में तीन तारे होते हैं | जुलाई और अगस्त में श्रावण
मास में यह नक्षत्र उदित होता है इसीलिए इस माह को श्रावण मास कहा जाता है | इसके अन्य नाम हैं गोविन्द, विष्णु, श्रुति, श्राविष्ठ | कुछ स्थानों पर
बुध को भी श्रवण कहा गया है |
Astrologers कान को भी श्रवण नक्षत्र का चिह्न मानते हैं |
इस कारण से कान के माध्यम से प्रदर्शित होने वाली सारी विशेषताएँ इस नक्षत्र के
जातकों में हो सकती हैं – जैसे सुनना अथवा सुन कर सीखना | उपनिषद काल में गुरु के
समीप बैठकर तथा गुरुमुख से श्रवण करके ही समस्त विद्याएँ प्राप्त की जाती थीं | और
न केवल विद्या प्राप्त की जाती थी, बल्कि उसे इस प्रकार स्मरण
भी रखा जाता था कि दूसरे लोगों तक उस ज्ञान का प्रचार प्रसार किया जा सके – दूसरे
लोगों को भी वह विद्या सिखाई जा सके | इस प्रकार सुनने के साथ साथ ज्ञान को
संगृहीत और सुरक्षित रखने के अर्थ में भी श्रवण शब्द का उपयोग किया जाता है |
इस नक्षत्र का अधिपति भगवान विष्णु को माना जाता है | इस
प्रकार भगबान विष्णु से सम्बन्धित विशेषताओं का भी द्योतक ये नक्षत्र हो जाता है, जैसे - चतुराई, संयम, कुशल प्रबन्धक तथा समय के
अनुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता आदि | कुछ लोग सरस्वती को इस नक्षत्र की अधिष्ठात्री देवी मानते हैं | इस प्रकार
सरस्वती की विशेषताओं, जैसे – ज्ञान प्रदान करना तथा ज्ञानार्जन करना, संगीत में रूचि, कुशल वक्तव्यता आदि का भान भी इस नक्षत्र से
होता है | इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव में आने
वाले जातक वाक्चातुर्य के
माध्यम से सफलता प्राप्त कर सकते हैं |
मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की कथा से तो सभी परिचित हैं –
श्रवण कुमार अपने दिव्यचक्षु माता पिता को काँवर में बैठाकर यात्रा कराने के लिए
जा रहे थे | मार्ग में माता पिता को प्यास रखी और वे काँवर
को एक ओर रखकर पास के सरोवर से जल लेने के लिए चले गए | महाराज दशरथ
शिकार के लिए उसी स्थान पर आए हुए थे | श्रवण ने सरोवर में से जल
लेने के लिए जैसे ही घड़ा उसमें डाला उसकी ध्वनि को किसी पशु की ध्वनि समझकर दशरथ
ने तीर चला दिया जिसने श्रवण कुमार के हृदय को बींध दिया | चीत्कार सुनकर
दशरथ दौड़े हुए गए तो बहुत अपनी करनी पर बहुत पछताए, पर होनी तो हो
चुकी थी | कहा जाता है कि श्रवण कुमार के दृष्टिहीन माता
पिता के श्राप के ही कारण राम जब वन में थे उस समय दशरथ ने पुत्र राम के विरह में
तड़प तड़प कर प्राण त्याग दिए | इस प्रकार सदाचार, सभ्यता, विनम्रता, कर्तव्यपरायणता तथा मातृ पितृ भक्ति आदि विशेषताएँ भी इस नक्षत्र से स्पष्ट
होती हैं |
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