नरक चतुर्दशी लक्ष्मी पूजन दीपोत्सव
हम आजकल बात कर रहे हैं पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली तथा इससे जुड़े पाँचों पर्वों की | कल धन्वन्तरी त्रयोदशी के विषय में चर्चा की थी | अब आगे...
पाँच पर्वों की श्रृंखला “दीपावली” की दूसरी कड़ी है नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली अथवा रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है और प्रायः यह लक्ष्मी पूजन से पहले दिन मनाया जाता है | किन्तु यदि सूर्योदय में चतुर्दशी तिथि हो और उसी दिन सूर्योदय के पश्चात किसी भी समय अमावस्या तिथि हो तो नरक चतुर्दशी लक्ष्मी पूजन के दिन ही ब्रह्म मुहूर्त में मनाया जाता है | जैसे कि इस वर्ष तीन नवम्बर को प्रातः नौ बजकर तीन मिनट के लगभग विष्टि (भद्रा) करण और विषकुम्भ योग में चतुर्दशी तिथि का आगमन होगा जो चार नवम्बर को सूर्योदय के पश्चात छह बजकर तीन मिनट तक रहेगी | इस प्रकार तीन नवम्बर को काली चौदस और अनुमान पूजा तो की ही जाएगी किन्तु साथ ही नरक चतुर्दशी का अभ्यंग स्नान भी चार नवम्बर को ही किया जाएगा – क्योंकि चार नवम्बर को सूर्योदय काल में चतुर्दशी तिथि है, जबकि तीन नवम्बर को सूर्योदय के लगभग तीन घंटे के बाद चतुर्दशी तिथि उदय होगी | इस दिन सूर्योदय छह बजकर पन्द्रह मिनट पर है और चन्द्रदर्शन प्रातः 5:40 पर है | इसलिए अभ्यंग स्नान इसी अवधि में चर तुला लग्न, लग्न में सूर्य-चन्द्र-बुध-मंगल योग, शकुनि करण और प्रीति योग में किया जाएगा – कुल अवधि है लगभग पैंतीस मिनट |
नरक चतुर्दशी के विषय में कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं | जिनमें सबसे प्रसिद्ध तो यही है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध करके उसके बन्दीगृह से सोलह हज़ार एक सौ कन्याओं को मुक्त कराके उन्हें सम्मान प्रदान किया था | इसी उपलक्ष्य में दीपमालिका भी प्रकाशित की जाती है |
एक कथा कुछ इस प्रकार भी है कि यमदूत असमय ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा रन्तिदेव को लेने पहुँच गए | कारण पूछने पर यमदूतों ने बताया कि एक बार अनजाने में एक ब्राह्मण उनके द्वार से भूखा लौट गया था | अनजाने में किये गए इस
पापकर्म के कारण ही उनको असमय ही नरक जाना पड़ रहा है | राजा रन्तिदेव ने यमदूतों से एक वर्ष का समय माँगा और उस एक वर्ष में घोर तप करके कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को पारायण के रूप में ब्रह्मभोज कराके अपने पाप से मुक्ति प्राप्त की | माना जाता है कि तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है |
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर यमराज के लिए तर्पण किया जाता है और सायंकाल दीप प्रज्वलित किये जाते हैं | माना जाता है कि विधि विधान से पूजा करने वालों को सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है और अन्त में वे स्वर्ग के अधिकारी होते हैं |
रूप चतुर्दशी भी इसी को कहा जाता है | हमारे विचार से “स्वर्ग” हमारा अपना स्वच्छ मन ही है – हमारी अपनी अन्तरात्मा | और सभी प्रकार की नकारात्मकताएँ ही वो सर्वविध पाप हैं जिनसे मुक्ति प्राप्त करने की बात बार बार की जाती है | जब हम पूजा पाठ या जप ध्यान इत्यादि कोई सकारात्मक कर्म करते हैं तो हमारे भीतर की सारी नकारात्मकताएँ स्वतः ही दूर होती चली जाती हैं और हमें उनसे मुक्ति प्राप्त होकर हमारे भीतर सकारात्मकता विद्यमान हो जाती है – जिसके कारण फिर किसी भी प्रकार के ईर्ष्या द्वेष क्रोध मोह अथवा नैराश्य आदि के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं रह जाता – और हमारी अन्तरात्मा अथवा हमारा अपना मन स्वर्ग की भाँति निर्मल और उत्साहित हो जाता है और तब जीवन में निरन्तर हर क्षेत्र में हम प्रगतिपथ पर अग्रसर होते जाते हैं और परिणामस्वरूप हमारा शरीर भी स्वस्थ रहता है – जिसका तेज हमारे समग्र व्यक्तित्व में निश्चित रूप से वृद्धि का कारण बनता है – एक ऐसा निखार जैसा किसी प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधन के द्वारा भी सम्भव नहीं... यही है वास्तव में रूप चतुर्दशी का भी महत्त्व... और यही है वास्तविक अर्थों में समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त करना...
इसी दिन 21 दिनों से चले आ रहे केदार गौरी व्रत का भी पारायण होगा | मान्यता है कि माता गौरी ने शिव को प्राप्त करने के लिए केदार व्रत किया था जिससे प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने उन्हें अपने वामांग में स्थान दिया और अर्द्धनारीश्वर कहलाए |
जहाँ तक लक्ष्मी पूजा का प्रश्न है, तो लक्ष्मी पूजा एक विशेष मुहूर्त में की जाती है | सर्वसाधारण के लिए प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का विधान है | प्रदोष काल सूर्यास्त से कुछ समय पूर्व आरम्भ होता है और लगभग दो घंटा चौबीस मिनट तक रहता है
| इस वर्ष अमावस्या तिथि का आगमन चार नवम्बर को प्रातः छह बजकर चार मिनट के लगभग चतुष्पद करण और प्रीति योग में होगा जो अर्द्धरात्र्योत्तर 2:44 तक रहेगी | पञ्चांग की गणना के अनुसार सर्व साधारण के लिए लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त है सायं 6:10 से रात्रि 8:04 तक – इस समय वृषभ लग्न, नाग करण, आयुष्मान योग, सूर्य और चन्द्र दोनों स्वाति नक्षत्र पर हैं | इसके अतिरिक्त व्यापारी वर्ग जो दिन में अपने व्यावसायिक स्थानों पर लक्ष्मी पूजन करना चाहते हैं उनके लिए कुम्भ लग्न में दोपहर 1:43 से तीन बजकर नौ मिनट तक पूजन के लिए उपयुक्त समय है | अभिजित मुहूर्त में प्रातः 11:43 से 12:26 के मध्य भी लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है |
कुछ तान्त्रिक विधि से लक्ष्मी पूजन करने वाले लोग तथा कर्मकाण्ड में अत्यन्त दक्ष लोगों की मान्यता है कि महानिशीथ काल में लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए | तो रात्रि में 11:39 से 12:31 तक महानिशीथ काल है तथा अर्द्ध रात्रि में 12:40 से अर्द्धरात्र्योत्तर 2:56 तक स्थिर लग्न सिंह है, इस प्रकार 11:39 अर्द्धरात्र्योत्तर 2:56 तक निशीथ काल की पूजा की जा सकती है | किन्तु प्रायः जन साधारण के लिए प्रदोष काल और वृषभ लग्न में ही लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त माना जाता है – यानी सायं 6:10 से रात्रि 8:04 के मध्य | साथ ही, लक्ष्मी पूजन में स्थिर लग्न का विशेष ध्यान रखना होता है और वृषभ, सिंह तथा कुम्भ तीनों लग्न स्थिर लग्न ही हैं |
दीपावली पर्व प्रकाश का पर्व है - बुराई, असत्य, अज्ञान, निराशा, निरुत्साह, क्रोध, घृणा तथा अन्य भी अनेक प्रकार के दुर्भावों रूपी अन्धकार पर सत्कर्म, सत्य, ज्ञान, आशा तथा अन्य अनेकों सद्भावों रूपी प्रकाश की विजय का पर्व है और ये ही दीपमालिका के प्रमुख दीप हैं... अस्तु ! दीप प्रज्वलित करने के साथ मन में ज्ञान, स्नेह, परस्पर विश्वास और एकता के दीप प्रज्वलित करें... स्वच्छता का ध्यान रखें तथा धुएँ वाले पटाखों से दूर रहे... माँ लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सभी पर बनी रहे तथा इस अवसर पर प्रज्वलित दीपमालिका के प्रत्येक दीप की प्रत्येक किरण सभी का जीवन सुख-शान्ति-उल्लास-प्रेम-सौभाग्य-स्नेह और ज्ञान के आलोक से आलोकित करे… इसी कामना के साथ सभी को अग्रिम रूप से दीपावली की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…