नमस्कार मित्रों... आज सभी कोरोना के कारण
डरे हुए हैं... एक ऐसा वायरस जिसके रूप में एक अदृश्य शक्ति ने हर किसी को घरों
में कैद किया हुआ है... किन्तु यह भी सत्य है कि ऐसी कोई रात नहीं जिसकी सुबह न
हो... इसीलिए है विश्वास कि शीघ्र ही सुख का सवेरा होगा और कष्ट की इस बदली को
चीरता सूर्य चारों ओर अपनी मुस्कराहट बिखराएगा...
है कौन ये अदृश्य कौन है छिपा हुआ, आज सारा
विश्व जिससे है डरा हुआ |
किस दिशा से और कौन राह से चला, आज सारा
विश्व जिससे है डरा हुआ ||
धर्म जात पात कुछ भी मानता नहीं, वृद्ध है
युवा है बाल है पता नहीं |
हम हैं मरते जात पात धर्म के लिए, कर रहा
तभी ये आज अट्टहास है ||
आओ मिलके विश्व को ऐसा बनाएँ हम, ऊँच नीच
का जहाँ न कोई भेद हो |
ये कोरोना है, ये कुछ भी जानता नहीं, आज
यहाँ, कल है वहाँ, परसों हो कहाँ ||
महाशक्तियाँ भी आज तोड़ती हैं दम, थम रही है
आज लय साँसों की हरेक पल |
चरमरा उठी हैं व्यवस्थाएं अब सभी, प्रगति
पथ पे आज देखो शाम है ढली ||
अन्धकार की निशा है सामने खड़ी, मन घिरा है
आज सन्देहों के जाल से |
और मनुजता भी आज सोच में पड़ी, होगा दूर
कैसे ये अवरोध, सोचती ||
त्रासदी है इस सदी की ये बहुत बड़ी, है
शत्रु ये परोक्ष, कभी दीखता नहीं |
है मगर संकल्प मन में, होगा इसका
अन्त, दूर रहेंगे जो एक दूसरे से हम ||
है आज बना मास्क कवच, छोड़ना नहीं,
और बढ़के हाथ भी किसी का थामना नहीं |
पर मन से ना हों दूर, ऐसी कामना करें, तो
सुखभरी उस भोर को देखेंगे हम सभी ||
है महासंग्राम का सैनिक हरेक जन, हो रहा
संघर्ष आज है हरेक पल |
है दुखों की रात छोटी, सुख के दिन
बड़े, बीत जाएगी ये रात, आस जो रहे ||
जी बिल्कुल, रात कितनी ही बड़ी क्यों न
हो, हर रात का सवेरा होता है... इस कोरोना की भयानक अँधियारी
रात भी बीतेगी और सुख का उजियाला हर ओर फैलेगा... किंचित लालिमायुत उषा को आगे
करके अरुण रथ पर सवार भोर का सूरज आशा का संदेसा लेकर आएगा... किन्तु तभी, जब हम
रहे सावधान... जब हम करते रहे पालन कोरोना के नियमों का... लगाते रहे मास्क...
बनाकर रखी दो गज की दूरी... और रखा ध्यान साफ़ सफाई का... सभी स्वस्थ रहें,
रोगमुक्त रहें, यही कामना है... कात्यायनी...