जैसे साहित्य में विफल लेखक आलोचक बन जता है, उसी तरह जीवन में विफल आदमी 'व्हाट्सएप-ग्रुप' बना कर सफल 'एडमिन' हुइ जाता है.अपना तो अनुभव यही बताता है. (अंदर की बात जे है कि मैं भी एक एडमिन हूँ) 'व्हाट्सएप-ग्रुप' के कुछ एडमिनों की शारीरिक संरचना वैसे तो आम मनुष्य के जैसी ही होती है, पर वे अपनी अतिरिक्त क्षमता विकसित करके एक दिन जड़मति से सीधे सुजान में परिवर्तित हो जाते हैं. इसलिए वे आलतू-फालतू ज्ञान के मामले में वे सबसे आगे होते हैं. तभी तो 'एडमिन' जैसे पद को सुशोभित कर रहे होते हैं, वर्ना वे भी ग्रुप के निरीह सदस्यों में से एक होते, जो अक्सर भयंकर बेचारे किस्म के होते हैं. उनका 'व्हाट्सएप-भविष्य' एडमिन की दया पर निर्भर होता हैं। एडमिन उनकी सहमति के बगैर उनको जोड़ता है और जब मूड हुआ, रिमूव (हटा) भी देता है. ऐसा करते हुए उस की आत्मा गदगद रहती है. ऐसे एडमिन खुद को प्रधानमंत्री से कम नहीं समझते । कुछ एडमिन लगातार फतवे जारी करते रहते हैं , ''कोई भी घटिया चुटकुले पोस्ट नहीं करेगा''.... किसी पर टान्ट नहीं कसेगा''... ये नहीं करेगा.... वो नहीं करेगा''. और पता चला कि खुद फुहड़ चुटकुला दे रहे हैं। लेकिन उसे सब छूट है क्योंकि 'एडमिन' है भाई. कुछ खाली बैठे लोग ग्रुप बनाने में ही लगे रहते हैं. गोया उनके पास और कउनो धंधा ही नहीं है. तुकबन्दी करने वाले कवि टाइप का जीव होगा तो ग्रुप बना लेगा, 'कविताकला'. और लोहे का व्यापारी है, तो उसके ग्रुप का नाम होगा, 'हम लौह पुरुष'. पिछले दिनों एक कबाड़ी ने भी ग्रुप बनाया और उसका नाम रख दिया, 'कबाड़खाना'. जीवन भर ब्लैकमेलिंग करने वाले एक सज्जन ने ही अपने ग्रुप का नाम रख दिया , 'हम क्रांतिकारी'. इसमें उन सबको को शामिल किया जो 'सूचना के अधिकार' का अपने पक्ष में 'आर्थिक उपयोग' करे की कला में पारंगत थे. पाकिटमारों ग्रुप बनाया और उसका नाम आम रखा, 'सफाईकर्मी' .
कल तक जिन्हें कोई मोहल्ले में भी न पूछता था, वे आज दो-तीन ग्रुपों के स्वामी हैं.एक ने तो बाकायदा विजिटिंग कार्ड छपवा लिया है, जिसमे लिखा रहता है, 'एडमिन- कबाड़खाना', 'एडमिन -कविताकला', 'एडमिन फलाना-फलाना'. जो भी मिलता है उससे आग्रह करते हैं 'हमारे ग्रुप से जुड़ जाएँ और क्रांति करें।' एक एडमिन तो कमाल का था. उसकी अपने सगे भाई से नहीं पटती थी, मगर उसके ग्रुप का नाम था, 'भाईचारा'. अपने ग्रुप में वो प्रेम का, भाईचारे का, दया-ममता का संदेश देता था. और सगे भाई के खिलाफ मुकदमे में भिड़ा रहता था. तो एडमिन अनन्त, एडमिन-कथा अनन्ता है. कुछ एडमिन घर पर भी अकड़ कर चलते हैं और बाहर भी. इधर-उधर कुछ इस अंदाज़ से देखते हैं कि लोग समझ जाएँ कि बन्दे में कुछ दमख़म है. एडमिन को लगता है कि वो जन-गण -मन का भाग्यविधता है और उसके ग्रुप के सदस्य जो हैं सो केवल मोहरे हैं।
उस दिन एक अस्त-व्यस्त पर अपने में मस्त एडमिन पर उसकी एक अदद धर्मपत्नी चीख रही थी, ''ये क्या, हर वक्त मोबाइल में लगे रहते हो, घर के काम तो करते नहीं।'' पति कुछ देर के लिए सहम गया और बोला, ''रुको अभी, दो लोग को जोड़ना है और पांच लोगों को हटाना है.'' पत्नी चीखी, '' तुम्हारे जोड़-घटाने की प्रतिभा यही दिखती है. देखो, अपना बिट्टू फिर फेल हो गया है गणित में.'' एडमिन पत्नी की मूढ़ता पर मन-ही-मन दुखी हुआ और गुस्से में व्हाट्सएप ग्रुप से दस लोगों को हटा दिया .ये वे लोग थे, जो न कोई चुटकुले भेजते थे, न शेरोशाइरी, न किसी महापुरुष का कोई अनमोल वचन. बस व्हाट्सएप के जनपद में उपेक्षित और निष्क्रिय नागरिक की तरह पड़े रहते थे। 'एडमिन' ऐसे लोगो को हटा कर बड़ा खुश होता है .उसे लगता है, जैसे देश की सीमा से किसी घुसपैठिए को भगा दिया हो. एडमिन अपना महत्व बताने के लिए कुछ-न-कुछ निर्देश भी पेलते रहता है, जिसे हर सदस्य झेलते रहता है. एक बार एक एडमिन ने किसी सदस्य को हटा दिया तो सदस्य ने फोन कर उसकी क्लास ली, ''क्यों भाई, चिरकुट जी, मुझे क्यों हटा दिया? जोड़ा ही क्यों था, और किससे पूछ कर? और अब हटा क्यों दिया ? तुम हो कौन भाई? कहाँ से टपके हो?'' इतना सुनना था कि एडमिन पिन-पिन करने लगा -'' हें... .हें, भूल से रिमूव हो गया। फिर जोड़ लेता हूँ। '' सदस्य कहता है, '' भूल कर भी ऐसा मत करना। न जाने कितने जन्मों के बाद मनुष्य योनि नसीब हुई है और तुम उसका सुख लेने की बजाय अपने ग्रुप में जोड़ कर आलतू-फालतू फूहड़ चुटकुले और राजनीतिक आग्रह-दुराग्रह झेलवाते रहते हो. मुझे मुक्त रखो. तुम्हें दूर से ही नमन। '' फटकार सुनकर एडमिन टेंशना जाता है, पर बहुत जल्दी सामान्य हो कर फिर 'किसे हटाऊँ, किसे जोड़ूँ' में भिड़ जाता है. पत्नी सर पीटती है और निठल्लेराम उर्फ़ एडमिन-पतिदेव को कोसते हुए किराने का सामान लेने खुद निकल जाती है.