व्यंग्य / 'इनबॉक्स' वाला ई- मनुष्य
ई जो नवा ज़माना है न साहेब, ई तो सचमुच 'ई'-मनुष्य का ही है.बोले तो, 'ई-मेल' का है। क्या 'मेल' और क्या 'फी-मेल', हर कोई इसी से खेल रहा है। हर तरफ 'ई' है। 'ई-बैंकिंग', 'ई-मार्केटिंग', 'ई-गवर्नेंस', 'ई-लूट', 'ई-ठगी', 'ई- लव', 'ई-रोमांस' आदि-आदि। कुछ ' बुड़बक लोग हमसे पूछते हैं, ''ई' का है भाई ?'