अपुन के यहाँ भाई लोग कुछ इस तरह से पर्यावरण दिवस मनाते हैं,पहले सौ पेड़ काटते हैं और उस पर दस पेड़ लगाते हैं. और हर दस पेड़ों में सोचिए तो ज़रा कितने बच पाते हैं ? जब-जब अपने देश में, पर्यावरण दिवस सम्पन्न होता है, और उसी दिन से पर्यावरण और ज्यादा विपन्न होता है।
परसोंं एक पर्यावरण प्रेमी मिल गए।
पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम साल में एक बार ही प्रकट होता है। वो भी पर्यावरण दिवस पर। साल भर ये क्या करते हैं? हम बताए देते हैं। साल भर पर्यावरण प्रेमी हरेराम 'निर्मोही' कठफोड़वा बनकर पेड़ों को काटकर मालामाल होने के जुगाड़ में लगे रहते हैं। जंगल जाते हैं और देखते हैं कि ऐसा कौन-सा पेड़ काटा जाए, जिससे जेबें भारी हों। वन विभाग के अफसर पतझर सिंह से हरेराम के संबंध बड़े गहरे हैं। एक पेड़ है, तो दूसरा पत्ता है। एक कपड़ा, तो दूसरा लत्ता है। एक छक्का है, तो दूसरा सत्ता है। एक ठोंगा है, तो दूसरा गत्ता है। एक बर्र है, तो दूसरा छत्ता है। उनकी जोड़ी ऐसी कि दम टूट जाए, दोस्ती न टूटे। भ्रष्टाचार का मजबूत जोड़ 'ऐसई' होता है। तो, हरेराम और पतझर सिंह की जोड़ी के प्रताप से जंगल के जंगल अमंगल के शिकार हो रहे हैं। जंगली जानवर अपने शावकों (बच्चों) को डराने के लिए अब तो बाकायदा इस जोड़ी का नाम लेने लगे हैं।
उस दिन शेर अपने शावक से कह रहा था - 'अरे सो जा बेटे, नहीं तो हरेराम या पतझर सिंह आ जाएगा।''
कुछ ऐसी प्रतिष्ठा पाई है अपने हरेराम निर्मोही ने। यही हरे राम साल में एक दफे पर्यावरण दिवस बड़ी धूमधाम से मनाता है। जिसकी खाओ, उसकी गाओ। जिसके सहारे रोजी-रोटी चल रही है, मालामाल हो रहे हैं, उसे तो याद करना ही चाहिए। यही तो नैतिकता है भई। जिन पेड़ों को काट-काटकर हरेराम, लाल हो रहे हैं, उन पेड़ों की याद में क्या साल में एक बार एक-दो पेड़ भी नहीं लगा सकते ? इतने भी अहसानफरामोश नहीं हुए हैं लोग।
हरेराम जी कहने लगे - ''आप हमारे पर्यावरण दिवस के कार्यक्रम में नही आए साहब।''
मैने कहा - ''उसी कार्यक्रम में न, जिसको सम्पन्न करने के लिए आप लोगों ने अनेक पेड़ काट डाले थे ?''
हरेराम जी अचकचा गए - ''अरे-अरे नहीं भई, हमने पेड़ नहीं, कुछ पत्ते काटे थे। हमारे हर अच्छे काम को लोग दुष्प्रचारित कर देते हैं। भविष्य में आप आइएगा। तब पता चलेगा कि कितने पेड़ लगाते हैं।'' मैंने कहा - ''वो सब तो ठीक है। लेकिन ये बताइए कि कितने पेड़ जिं़दा रहते हैं ?''
हरेराम बोले - ''हम तो कर्म करते हैं, फल की इच्छा नहीं रखते। वह ऊपर वाले के हाथ पर छोड़ देते हैं। पौधा लगाना अपना काम, और पौधे को पेड़ बनाने प्रभु का काम।''
मैंने पूछा - ''और पेड़ को ठूँठ बनाना भी क्या प्रभु का काम है ?'' हरेराम समझ गए कि उनकी हजामत बन सकती है इसलिए वह खाँसने लगे। फिर बोले - ''अभी तो चलूँ, पर्यावरण दिवस समारोह के फोटोग्राफ्स धुलने डाले थे, उन्हें ले आऊँ । अख़बारों में विज्ञप्तियाँ भिजवानी है।'' पर्यावरण प्रेमी हरेराम चले गए। मैं उनके जुझारूपन को प्रणाम करने झुक गया।