विश्व के तमाम देशो के बीच अगर नारेबाजी की प्रतियोगिता हो तो अपना देश हमेशा पहले नंबर पर रहेगा।
एक-से-एक नारे । कुछ लोग तो जीवन भर नारे की ही खाते हैं. ये और बात है कि कुछ अधिक खा लेते हैं तो अपच होने लगती है. यानी काली कमाई जमा होती जाती है. तो का करें। मजबूरी में विदेश जाकर काला धन जमा करके लौटते है और फिर नारा लगाते हैं -भारत माता की जय. हर सरकार नए नारे के साथ प्रकट होती हैं। इसे नारा नहीं झुनझुना भी कह सकते हैं. और कमाल की है जनता। हर बार झुनझुने से प्रभावित हो कर अपने दुबारा लुटने का बंदोबस्त कर लेती है. किसी ज्ञानी ने कहा है कि इसी छलावे का नाम है लोकतंत्र।
जल संकट का दौर था, तो सरकार चिल्लाई ''जल बचाओ. जल है तो कल है।''
जनता ने कहा, ''जल हो तो बचाएँगेन न ।''
मंत्री ने चौंकते हुई कहा -''अरे, जल नहीं है? अभी तो पीए ने गूगल में सर्च कर बताया कि जल की कउनो कमी नहीं है. यकीन नहीं होता तो गूगल बाबा की शरण में जाओ.''
जनता बोली- ''गूगल सर्च कर सकते तो पानी का भी बंदोबस्त कर लेते।''
पीए ने मंत्री के कान में कहा- ''अनपढ़ जनता है। बेचारी, इंटरनेट का कनेक्शन नहीं लगा पा रही।''
पीए की बात सुनकर मंत्री की आँखों में आँसू आ गए और बड़बड़ाए -' हाय-हाय मेरी जनता'। फिर बोतलबंद पानी को गटकते हुए बोले- ''आप लोग बोलिए माता की जय। हमारी माता जल संकट हरेगी।''
जनता ने नारा लगाया। मंत्री ने पूछा- ''कैसा फील हो रहा है?''
जनता बोली- ''लग रहा है, हम पानी से नहा रहे हैं। आपका आभार । आपने हमें जल संकट से उबारा।'' कुछ दिनों के बाद चुनाव होने थे। मंत्री को सत्ता का खून लग चुका था। फिर चुनाव लडऩे मैदान में उतर चुके थे।
वे जनता के पास पहुँचे और बोले- ''मुझे ही वोट देना। भारतमाता की जय.''
जनता ने कहा, '' बिल्कुल आपको ही देंगे। भारत माता की जय।''
चुनाव के नतीजे सामने आए, तो मंत्री और उनकी पूरी सरकार 'टें' बोल चुकी थी। पराजित मंत्री का पीए गधे के सर से सींग की तरह गायब हो चुका था।
नई सरकार सत्ता पर विराजमान हो चुकी थी। उसने नया नारा दिया था- 'देश मेरा, विकास मेरा। सबको पानी, सबको काम, थोड़ी मेहनत, ज्यादा दाम'।
जनता ने सोचा- नारा तो अच्छा है। अब शायद अच्छे दिन आएँगे । लेकिन न विकास हुआ, न किसी को काम मिला । दाम तो बहुत दूर की बात।
एक ने कहा- ''क्या हम फिर ठगे गए?''
दूसरा हँस पड़ा।
पहले ने पूछा- ''क्यों हँस रहे हो?''
दूसरे ने कहा- ''अपने आप पर हँसने से टेंशन कम हो जाता है। सरकार पर हँसना अपनी मूर्खता को प्रकटीकरण ही है। इसलिए अब चिंता मत करो। नारों के साथ हो जाओ और भारत माता की जयबोल कर संतोष करो।''
पहले ने पूछा- ''और ये जो जल संकट है, उसका क्या?''
मित्र ने कहा- '' ये किरकेट मैच काहे होते हैं भाई? इनको देखो और मनोरंजन करो न। और अगर प्यास लगती भी है तो बाजार में बिकने वाला फलाना-फलाना शीतयपेय पी कर कूल-कूल बने रहो।''
गिरीश पंकज के व्यंग्य