पूछो तो इक बार ज़रा-सा अरे कहाँ से आई है
कुरसी के चेहरे पर ये जो लाली है, चिकनाई है
धोखा देना, लूटपाट ही जिन लोगो की फितरत है
अब तो वे ही नायक अपने अल्ला-रामदुहाई है
बहुत सहा है जुल्म मगर अब और नहीं सह पाएंगे
अभी बगावत शुरू हुई है अभी तो ये अंगड़ाई है
शातिर लोगों को सम्मानित करना अब तो फैशन है
जो शरीफ हैं उनके हिस्से में केवल तन्हाई है
जो भुखमर्री, बदहाली से लड़ने खातिर निकला था
उस बन्दे का हाल न पूछो इतनी अधिक कमाई है
नहीं कला से उनका लेना सृजन-फ्रिजन बेमानी है
जीवन का मतलब है मस्ती सब कुछ हवा-हवाई है
मुस्काना ही भूल चुके हैं इतना ऊपर उठ गए वे
जाने किसकी बुरी आत्मा उनमें आन समाई है
घपले-घोटाले करके भी वे कितना मुस्काते हैं
सब कहते हैं बेचारे ने शर्म बेच ही खाई है
कल तक जिसके दरवाजे पर भीड़ लगी देखी पंकज
भूतपूर्व एकाकी बैठा वक्त बड़ा हरजाई है