उनको लालबत्ती से बड़ा प्रेम था.
कार में बैठे हैं तो सामने लाल बत्ती, बैलगाड़ी पर भी सवार होते तो सामने लालबत्ती. कभी-कभार नाटक-नौटंकी करने के लिए रिक्शे पर चलते तो भी तो हुड पर लालबत्ती. घर पर रहते तो बाहर लालबत्ती घूमती रहती.
लोग उन्हें 'लालबत्ती वाले भैयाजी' कहने लगे.
एक दिन वे मर गए. तब भी उनकी अंतिम इच्छा पूरी हुई.
अर्थी के सामने लालबत्ती लगाकर शवयात्रा निकली.
लोगों ने नारे भी लगाए- ''राम नाम सत्य है.....भैया जी अमर रहे ...
राम नाम सत्य है.....भैया जी अमर रहे.''
गिरीश पंकज के व्यंग्य