'व्हाट्सएप' के बन गए, 'एडमिन' जब से यार .
इसे जोड़, उसको हटा, ये ही कारोबार.
फेसबुक्क में खोल कर, खाता किया कमाल .
जिसकी जितनी है अकल, वैसी उसकी चाल.
अपना नहीं विचार कुछ, केवल 'कॉपी-पेस्ट' .
मौलिक-चिंतन के बिना, कैसे होंगे 'बेस्ट'
'व्हाट्सएप' में दिन गया, और गई फिर रात .
सुबह देर तक सो रहे, यही नई सौगात.
जिसको देखो रच रहा, 'ग्रुप' अपना हर रोज.
लोग बहस में भिड़ रहे, 'एडमिन' करते मौज ..
'व्हाट्सएप' भी बन गया, राजनीति का मंच.
दल-दल में सब फँस गए, 'एडमिन' करे प्रपंच.
'व्हाट्सएप' में लाइए, निर्मल-सरस-विचार.
कटुता- फटुता छोड़ कर, बाँटे सबको प्यार.
लाख चौरासी जन्म के, बाद बने इंसान.
'व्हाट्सएप' में घुस गया, जीवन का हर ज्ञान .
सोशल साइट और क्या, निकले यहाँ भड़ास.
आपस में ही कर रहे, अपनों का उपहास।
ले ले कर 'सेल्फी' बहुत, 'सेल्फिश' हो गए लोग.
अपने में ही हैं मगन, लगे छूत का रोग.