बाहर का जब अच्छा खाना लगता है
यानी अब ये घर बेगाना लगता है
हम भी अच्छे बनते पर हालात न थे
हमको तो बस एक बहाना लगता है
इतनी जल्दी मंज़िल किसको मिलती है
कभी-कभी तो एक ज़माना लगता है
ज्ञान अनुभवी लोगो से ही मिलता है
सच बोलें तो एक खज़ाना लगता है
पी ली जितनी पीनी थी मयखाने में
चलो के अब खाली पैमाना लगता है
सच्चाई, ईमान, दया, करुणा-ममता
बिन इनके जीवन वीराना लगता है
आप बड़े ही नेक आदमी हैं 'पंकज'
जाने क्यों हमको ये ताना लगता है