चुगलीप्रसाद जी के घर बच्चा होने वाला है ।
उनकी बहू गर्भवती है। पहले सोच रहे थे, लड़का हो तो वंश चले, पर जब से ओलम्पिक में भारतीय कन्याओं ने पदक जीते हैं और उनकी करोडो की कमाई होने की खबर भी सुनी है, तब से उनकी लार ही टपकने लगी है। अब उन्होंने पुत्र जन्म की कामना ही छोड़ दी है.
अब वे सबसे कहते हैं, ''भैया, भगवान करे कन्या-रत्न ही हो. उसे हम भी खिलाड़ी बनाएंगे। पहलवानी के दांव सिखाएंगे। बेडमिंटन में चैम्पियन बनाएंगे। बहुत हो गया लड़का-लड़का। अब तो लड़का-लड़की एक समान का दौर है.मैं तो शुरू से इसके पक्ष में हूँ.''.
उनकी बाते सुन कर लोग हँस रहे हैं. उनकी घरवाली अक्सर हँसती है, पर अकेले में। (पति की बातों पर उसके सामने हँसने का परिणाम क्या हो सकता है, कहने की ज़रूरत नहीं) धन्य है अवसरवादी जी.
उस दिन तो उनके एक मित्र ने तो उनके मुंह पर ही कह दिया, ''वाह जी वाह, चुगलीप्रसाद जी उर्फ़ सीपीजी स्वार्थ लाग करहि सब प्रीती? कलजुग की है यह इक रीती। कल को अगर लड़के पदक लेने लगेंगे तो आप कहेंगे, लड़के ही ठीक हैं? ऐसा आचरण मत करो पंडिज्जी। लड़की को बिना किसी स्वार्थ के ही आने दो.''
सीपीजी बोले, '' क्या करें, वर्षों का टुच्चापन यकायक नहीं जाएगा न । 'टैम' तो लगेगा ही भाया। लेकिन सच कहूँ, दिल से सोच रहा हूँ अब अपनी सोच बदलूँ.''
मित्र ने पूछा- ''लड़की हुई तो क्या नाम रखेंगे उसका ?''
चुगलीप्रसाद जी बोले, ''मैं तो सीधे --सीधे 'स्वर्णा', 'पदका','गोल्डनीया' अथवा 'मैडेला' ही रख दूंगा। आजकल अँगरेज़ी नामो का भी फैशन है. ऐसे नाम रखने का शायद असर होगा और हमारी नतिनी बड़ी हो कर पदक ही ले कर घर आएगी। लोकल लेबल पर खेल ते-खेलते ऑलम्पिक तक भी पहुंचेगी पदक लाएगी तो घर पर नोटों की वर्षा होगी.'' उनके दिल की बात जबान पर आ गयी।
मित्र ने कहा, ''तो आप इसीलिए बेटी चाहते हैं कि वह नोटों की वर्षा करे? धन्य है आप. और अगर नहीं बारिश नहीं कर सकी तो क्या उस पर तानो की बौछार करेंगे? ''
सीपी जी की बोलती बन्द हो गई. वे पकड़े गए. उनका स्वार्थ पकड़ा गया.
वे कुछ देर चुप रहे फिर बोले, ''ऐसा नही है भाई, वो पदक लाए -न-लाए, अपनी बेटी ही रहेगी। फिर भी अगर ले आएगी तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा? क्या तुम्हारे घर में कोई लड़की है?''
मित्र मौन हो गया. उसके जीवन की चलनी में भी छेद -ही-छेद थे। कारण, उसने पिछले दिनों ही लड़के की चाहत में अपनी बहू का लिंग-परीक्षण कराया था.इ सलिए मित्र भी अब मैं .....मैं..... मैं.. करने लगा।
चुगलीप्रसाद हँस पड़े और बोले, ''भइये, दूसरो को आइना दिखाने से पहले तनिक अपना चेहरा भी देख लिया करो, हा-हा -हा। ''
मित्र का चेहरा लटक गया और वे चलते बने. चुगलीप्रसाद पहली बार गंभीरता के साथ घर में बेटी के जन्म की प्रतीक्षा करने लगे।
अब तो जिसे देखो,वहीच्च कन्या ही माँगता। यही प्रभु से कामना करता है अब तो बस बिटिया ही दीज्यो.
टैम -टैम की बात है।