बुजुर्ग पिता एक दिन बोले , ''बेटे श्रवण, कुछ दिन काशीवास करना चाहता हूँ।''
बेटा बड़ा प्रसन्न हुआ.पत्नी के दबाव के चलते वह बहुत दिनों से पिता से मुक्ति पाने का उपाय सोच ही रहा था. उसने 'तत्काल' में टिकट खरीदा और पिता को काशी पहुँचा दिया। पिता को एक धर्मशाला में जगह मिल गई. उन्होंने बेटे को आशीर्वाद दिया और कहा, ''' कुछ महीने तो रहूँगा, फिर बाद वापस आ जाऊँगा ।''
पिता को काशी छोड़ कर बेटा लौटा और पत्नी के सुझाव पर रातोरात घर बदल कर दूसरे शहर में जा कर रहने लगा। मोबाइल का नंबर भी बदल दिया। एक दिन पिता की तबीयत खराब हो गयी. देखभाल करने वाला कोई था नहीं, इसलिए उनका मन उचटा और वे अचानक वापस लौट आये. लेकिन आदर्श नगर में बेटा नहीं मिला। आसपास पूछा मगर किसी को पता नहीं था कि बेटा गया कहाँ।
भूखे-प्यासे पिता अपने पुत्र की खोज में भटकते रहे और एक दिन... अखबार में खबर छपी- 'एक वयोवृद्ध व्यक्ति का शव रेल पटरी के किनारे लावारिस पड़ा मिला। उसकी मुट्ठी में में एक पर्ची मिली, जिस पर लिखा है - 'श्रवणकुमार, 2/ 15, आदर्श नगर, रायपुर।' श्रवणकुमार की खूब तलाश की गयी, लेकिन वह नहीं मिला। अंतत: कालोनी के लोगों ने आपस में चंदा करके वृद्ध का अंतिम संस्कार किया।