आज़ादी उनका तकियाकलाम है.
जहां कही भी उन्हें मौका मिलता, आज़ादी को फिट कर देते हैं और हिट हो जाते है ।
एक दिन हद हो गई। कहने लगे -''हमें पीने की आज़ादी चाहिए''.
हमने कहा -''पानी पीने पर तो कोई प्रतिबन्ध नहीं है.''
वे बोले- ''मैं पानी नहीं, मदिरा की बात कर रहा हूँ। सुना है, सरकार दारूबंदी कर रही है. देश के लोगों को दारू पीने की आज़ादी चाहिए। हम इसे ले के रहेंगे।'' इतना बोल कर क्रांतिवीर ने कहा- ''इंकलाब ज़िंदाबाद , हिच्च- हिच्च।''
पीछे खड़े कुछ और वीरो हाथ लहरा कर कहा - ''ज़िंदाबाद। हिच्च- हिच्च।''
क्रांतिवीर ने भाषण शुरू किया - ''आज देश को एक बार फिर आज़ादी चाहिए। हमे पीने की आज़ादी दई दो। सिगरेट पीने की भी, क्योंकि इससे इस देश के आम आदमी का गम दूर होता है और वो हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला जाता है। हमे समलैंगिकता की आज़ादी चाहिए। जिसको जैसा रहना है, रहे.''
किसी ने टोका- ''भाई, तुम्हारी माँगे तो खतरनाक हैं. देश की सभ्यता-संस्कृति को बर्बाद कर देगी।''
क्रांतिवीर बोला - ''हमें तो आज़ादी चाहिए. संस्कृति एक छलावा है, भुलावा है। हमे इस भुलावे से भी आज़ादी चाहिए।''
हमने कहा -''अरे भाई, भारतमाता का कुछ ख्याल करो।''
क्रांतिवीर ने कहा - ''अरे, हम अपनी माँ का ख्याल नहीं रखते तो भारतमाता का क्या रखेंगे? अभी हमारा ध्यान आज़ादी पर केंद्रित है. पहले उसको हासिल कर लें, फिर सोचेंगे।'' हम मौन हो गए तो दूसरे मित्र ने पूछा ''-पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है? माता-पिता के सपने को पूरा करोगे न?''
क्रांतिवीर बोला - ''राजनीति का जो चस्का है न, तो उसके बाद माँ कसम, अब माता-पिता के सपने तेल लेने चले गए हैं. आए थे पढ़ने, पर कुछ नेताओं की संगत में आकर राजनीति का पाठ पढ़ रहे हैं. इसी में भयंकर मज़ा आ रहा है. अब राजनीति ही एक सपना है और इसे आज़ादी-आज़ादी कर-कर के पूरा करना है.अब तो हमारा नारा है - हमे पढ़ने-लिखने से आज़ादी चाहिए। बिना पढ़े डिग्री मिल जाए, यही हमारी मांग है.''
हमने कहा -''ऐसे में तो युवा पीढ़ी अराजक हो आएगी।'' वह बोला -''हम यही चाहते हैं. अराजकता, अशांति। देश को आज़ादी चाहिए, मनमानी करने की। अगर ऐसा नहीं तो काहे की आज़ादी ?''
मैंने कहा -''तुम जैसे क्रांतिकारी बढ़ गए तो देश का कल्याण (जी आनंदजी ) हो जाएगा। कुछ तो आत्ममंथन करो कि तुम्हारी पीने-पिलाने की आज़ादी इस देश को कहाँ ले जाएगी?''
क्रांतिवीर हँसा - ''हमारा फंडा अलग है. हम बर्बादी के बाद नया ज़माना लाएंगे. ये विकास का नया फार्मूला है. इसे उत्तर आधुनिकता कहते हैं.''
मैंने कहा -''अरे पांड़े, पहले ठीक से आधुनिक तो हो जा।''
वह बोला -'' हम आधुनिक है. देखो, मेरी फटी जींस, हाथ में एप्पल का मोबाइल, जेब में कंडोम। बाँहों में गर्ल फ्रेंड, और क्या चाहिए। देखो, हम लड़के-लड़कियां एक साथ रहते है, जो नहीं करना चाहिए, वो भी कर लेते है. और शुद्धतावादी हमे रोकते है, टोकते है. हमे टोका-टोकी से आज़ादी चाहिए। बोलो इंकलाब ज़िंदाबाद।''
उसके साथियों ने दुहराया -''ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद।''
मुझे लगा आज़ादी के ये नए खतरनाक संस्करण सुधरने से रहे. नादाँ की दोस्ती जी की जलन.
मैंने मित्रो के साथ पतली गली से निकल लेने में ही अपनी भलाई समझी।