लेखक उठ।
जुगाड़ जमा।
सम्मान पा।
सरकारी मदद से किताब छपवा।
सच्चे लेखक ऐसा नहीं करते, पर तू कर। नेताओं के कर-बेशरम (अब करकमल कहाँ रहे?) से विमोचन करवा। खुद को धन्य समझ। सरकारी खरीदी का भी जुगाड़ जमा।
लेखक उठ। अफसरों के पीछे भाग। आदर्शवादी मत बन। आदर्श केवल च्यवनप्राश की तरह चाटने के काम आता है। च्यवनप्राश चाटने से तो शायद कुछ लाभ मिलता भी हो पर आदर्शवादचाटन- क्रिया निरर्थक साबित होती है। ज्ञानी यही बताते हैं। सो, तू भी समय के साथ चल। सत्ता शरणम् गच्छामि हो जा। देख, फिर जीवन की तमाम सुविधाएं तेरी गोदी में क्रीड़ाएँ करेंगी। और तू मनुष्य योनि में जन्म लेने की सार्थकता को समझ सकेगा। पगले, ऐसा मत सोच कि लोग का कहेंगे,बोलेंगे, का सोचेंगे । लोगोँ का काम तो है कहना। सबकी चिंता करेगा न, तो सुख की सीता को वन भेजना पड़ेगा। साहित्य में अब कलेवर राम का और चरित्तर रावण का चाहिए।
सो, इस मन्त्र को गन और अपनी आत्मा की सुन. सफलता की भरपूर गारन्टी है। यही साहित्य की मुख्य धारा है। जो इस धारा में नहीं बहा, वो बेचारा है.. किस्मत का मारा है। शादीशुदा हो कर भी कुंवारा है. जबकि सच्चाई यह है कि जुगाड़ की धारा ने ही न जाने कितनों को उबारा है। इसलिए महाज्ञानी बन। जुगाड़श्री बन। आयोजको के चक्कर लगा। मान और धन अर्जित कर। साहित्य नहीं, मंच पर ध्यान लगा। यही तेरे लिए काबा है, काशी है. जो इसको नहीं समझा, उसके जीवन में उदासी ही उदासी है. चल, पहले पैसे खर्च कर। बोले तो, इन्वेस्ट कर। कुछ पाने के लिए कुछ नहीं, अब बहुत कुछ खोना पड़ता है। यह फंडा हर लिंग के लिए समान रूप से लागू होता है। जिसकी आत्मा जो कहे, वो करना-ही-करना मांगता। अगर तुझे कछु नहीं चाहिए, यानी तू शहंशाह रहना चाहता है तो घर बैठ। लिखना- पढ़ना कर। जुगाड़-फुगाड़ छोड़। महान बन। प्रतीक्षा कर। सम्मान तुझे खोजते हुए तेरे दर तक आएँगे। राजनीति तेरा चरणवन्दन करेगी। लोग वाह - वाह करेंगे। लेकिन यह लम्बी प्रक्रिया है. देख ले। इसमें रिस्क है. गुमनामी में खोने का.सोच ले. समझ ले। तेरा रस्ता क्या हो। फालतू उपदेशों पर ध्यान मत दे। अगर तेरे पास है तो विवेक से काम ले। वरना शैतान का नाम ले। गुटबाजी कर। 'गिव ऐंड टेक' का मंत्र जप. साहित्य की गटर गंगा में समाना है, तो समा जा, किसी को कौन रोक सका है. अपन को क्या !
लेखक उठ। वरना आराम बड़ी चीज है, मुंह ढक के साेइये। जुगाड़श्री बनना है तो कमर कस. खुद पर हँस.लोगों को धकिया. आगे निकल. पीछे वाले पर हँस. जुगाड़ एक कठिन कला है. देख शायर क्या कहता है. वो फरमाता है कि
ये जुगाड़ नहीं आसाँ
इतना तो समझ लीजे
मर जाएगी आत्मा
गर नाम कमाना है.
....तो ठंडे दिमाग से सोच ले।
दोनों रस्ते हैं. जुगाड़ वाला भी और साधना वाला भी. जुगाड़ में आसानी है. यहाँ दारू है. सुरा-सुंदरी है. जोड़तोड़ है. फिक्सिंग है. मगर साधना में तपस्या है। जिसे अनेक फालतू टाइप की चीज समझते हैं.
अब तू सोच ले, तुझे क्या करना है.