वह शख्स खाली पडी जमीन को खा जाने वाली नजरो से घूर रहा था. उसे देख कर मुझे लगा, जैसे कोई बलात्कारी, किसी युवती को निहार रहा है.... गोया कोई भूखा रोटी को देख रहा है..... जैसे कोई भूतपूर्व नेता अपनी छिन चुकी कुर्सी को देख रहा है.
भू माफिया की जीभ भी बार-बार बाहर निकल रही थी. या फिर यूं कहें कि श्वानटाइप की लपलपा रही थी. मुझे पक्का यकीन हो गया कि ये भू माफिया ही है. लेकिन माफिया से पूछे कैसे कि 'भाई मेरे, क्या तुम भू माफिया हो.' निबटा न देगा हमको। सो, हमने नेताओं की तरह बड़ी चालाकी से काम लिया.
मैंने अपनी वाणी में अतिरिक्त मिठास घोलते हुए पूछा- ''भाई साहेब, बहुत दिनों से ये सरकारी जमीन खाली-खाली पडी है. पता नहीं इसका स्वामी कौन है. मुझे ये जमीन खरीदनी है.''
मेरी बात सुन कर भू माफिया चहक उठा - ''अरे वाह, ये खाली जमीन है न ? देखो, इस ज़मीन पर पहले मेरी नजर पडी. सच बात तो ये है कि यह जमीन मेरी ही है.मैं इसे ही खोज रहा था.शहर में कई जगह अपने प्लॉट हैं न, याद ही नहीं रहता कि कौन-सी जमीन कहा हैं.''
मैंने कहा- ''बड़ी खुशी की बात है. ये जमीन आपकी ही निकल गयी. कमाल है. तो, क्या आप इस जमीन को बेचेंगे?''
भू माफिया हँसा- ''बेच देंगे, बेच देंगे मगर अभी नहीं, दो-तीन साल बाद. हम पहले जमीन खरीदते हैं या उसे कब्जे में करते हैं और बाद में बेचते है, ताकि अच्छी कीमत मिले. अपुन का तो यहीच्च धंधा है.''
मैंने पूछा- ''आप का व्यवसाय क्या है ?'' वो बोला-- ''मैं जमीन से जुड़ा आदमी हूँ। जमीन का ही काम करता हूँ.''
उसका उत्तर सुन कर मैं मन-ही-मन हँसा और बड़बड़ाया- ''ससुरे , सीधे-सीधे बोल न कि भू माफिया हूँ.''
मगर ऐसा बोलना स्वास्थ्य हितकर नहीं होता , सो प्रकट में मैंने मुस्करा कर कहा- ''अच्छा हुआ कि आप भू माफिया नही है. उन लोगों से बड़ा डर लगता है. एक ही प्लॉट को दो-तीन लोगों को बेच देते हैं.' भू माफिया भड़क गया. आप मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं? ''
मैंने कहा- ''जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी बात कर रहा हूँ.'' माफिया चुप हो गया और घूरते हुए बोला- ''आप अपना काम कीजिये। मुझे अपना काम कर ने दीजिये।'' मुझे लगा यहाँ से निकल लेना ही उचित होगा. सो, मैं आगे बढ़ गया. कुछ दूर जाने के बाद एक ओट लेकर मैंने भू माफिया जी को देखा। वे जमीन को निहारे जा रहे थे. उसकी तस्वीर भी खींच रहे थे. किसी से बात कर मंद-मंद मुस्किया रहे थे. दूसरे दिन वहा से गुजरा तो देखा भू माफिया जी जमीन को चारो तरफ से घिरवा रहे थे.
मैं सोचने लगा- 'अद्भुत हिम्मत होती है ऐसे लोगों की. इसीलिये तो हर कोई भू माफिया नहीं बन पाता, कलेजा चाहिए होता है, कब्जा करने के लिए. एक बार हमने कोशिश की थी, लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ उसके कारण शरीर में अब तक दर्द बना रहता है. इसलिए वो काम ही छोड़ दिया, उसके बारे में सोचना भी बंद कर दिया। लेकिन जब भू माफियाओं को देखता हूँ तो सोचता हूँ सचमुच ''वीर भोग्या वसुंधरा'' .
कुछ देर बाद हम खाली पडी जमीन से हो कर गुजर रहे थे तो देखा, वहां एक साइन बोर्ड लटका दिया गया है, जिस पर लिखा हुआ था - 'प्रस्तावित मंदिर के लिए चयनित धर्मस्थल' .