योग दिवस तो एक दिन आता है और चला जाता है किन्तु अपने यहाँ रोज योगासन जारी रहता है। गुंडे 'गुंडासन' कर रहे हैं, 'रेपासन' उनका प्रिय आसन है। पुलिस वाले 'डण्डासन' कर रहे हैं. टीवी चैनल वाले 'ऐडासन' (उर्फ़ विज्ञापनासन) में लगे हैं. कुछ व्यापारी 'लूटासन' कर रहे हैं. नेता 'झूठासन' वे व्यस्त हैं। सरकार 'करासन' में व्यस्त है. और आम आदमी 'शीर्षासन' के साथ ''भूखासन' करने में व्यस्त है.
हमने नेताजी से पूछा - ''आपके आसन कमाल के होते है. आप जिस अंदाज़ से गुलाटी मारते है, उसे देख कर बंदर भी चकित रह जाता है.''
मेरी बात सुन कर वे नाराज नहीं हुए, उलटे मोगाम्बो की तरह खुश होकर बोले, ''यह कला हमे विरासत में मिली है. इसी के सहारे हम वर्षो से राजनीति के गमले में टिके हुए है.''
मैंने फिर पूछा - ''आप इतना अधिक खाते है तो पचाते कैसे हैं?''
नेताजी बोले- '' तरह-तरह के आसन है इसलिए सब पचा लेते हैं। ट्रेडसीक्रेट है, फिर भी बता देता हूँ. पिछले दिनों पेट में एक पुल गया और मैं फौरन ''भुजंगासन'' करने लगा. पुल कहाँ गया, किसी को पता न चला. लाखो-करोडो रुपए सफाई से पच जाते है। अपनी सेहत टनाटन रहती है. पिछले दिनों छापा मारने के लिए एक टीम आयी तो मैं 'शवासन' करने लगा.जगा तो 'नोटासन' दिखाया, टीम चुपचाप लौट गई.''
आगे बढ़ा तो डंडा लहराते हुए सिपाही से टकरा गया.
मैंने कहा - ''आपका पेट निकल गया है। आप योग क्यों नहीं करते?''
वह बोला- ''डंडा चलाने से और वसूली करने के योग से तो करूंगा। हमारा असली योग यही है 'डण्डासन' . इसे ही करते रहते हैं। मेरा फूला पेट मत देखो, यह भ्रम फैलाने के लिए हैं। लोग समझते है कि मैं दौड़ नहीं सकता , मगर जैसे ही कोई मालदार अपराधी दिखता है, मैं उसके पीछे 'मिल्खा सिंघ' बन कर दौड़ जाता हूँ। ''
उसने इतना कहा ही था कि उसे एक ग्राहक नज़र आया और वह डंडा लेकर उधर दौड़ पड़ा.
कुछ देर बाद एक गुंडाजी मिल गए. गुंडे के साथ जी लगाना जरूरी है. ये लोग आजकल ज्यादा सम्मानित है। ससुरे कब विधायक-मंत्री बन जाएँ, कहना कठिन है.
मैंने कहा- ''आप तो योगासन करते ही होंगे. बड़ी मेहनत करते हैं आप लोग.''
वह बोला - ''योग किये बगैर हममे ताकत कैसे आएगी। मारपीट करनी है, लूटपाट करनी है, बलात्कार आदि करने है, ये सब बड़े ही श्रमसाध्य काम हैं। इसलिए हम लोग शरीर को फिट रखने के लिए रोज योग करते हैं। योग का काफ़िया भोग से मिलता है। योग करेंगे तभी भोग भी कर पाएंगे। ''
गुंडा जी पढ़े-लिखे थे, हाईटेक थे. बेरोजगारी के कारण गुंडागर्दी के धंधे में आ गए थे, बाद में राजनीति में भी जाएंगे, ऐसा उन्होंने बताया। अभी प्रशिक्षण ले रहे हैं।
अंत के सरकार में बैठे मंत्री जी मिल गए. हमने कहा -''आप ''करासन'' पर बड़ा जोर दे रहे हैं ?''
वे बोले- ''इससे सरकार का खज़ाना भरा रहेगा और हमारी सुख-सुविधाओं' में इजाफा होता रहेगा।''
मैंने भड़कते हुए कहा- ''भले ही हमारी जान चली जाए?''
वे बोले- ''ऐसा है भोले, जनता का मतलब ही है जो 'त्यागासन' करती है . देश को आगे ले जाना है तो ''भूखासन'' भी करना होगा.याद करो क्या कहा था गांधी ने.''
मैं पूछा -''क्या कहा था गांधी ने कि देश को लूटना?''
मेरी बात सुन कर वे फौरन 'मौनासन' में आ गए और 'खिसकासन' हो गए। समस्याओं से घिरे देश को समझने के लिए हम शीर्षासन' करने लगे।