वे अभी-अभी कुम्भ-स्नान करके लौटे थे और इस कारण पाप-मुक्त होने के अहसास से भरे हुए थे.
मुझे देख कर मुस्कराए और बोले- ''देखो, हम तो अपने सारे पाप धो कर आ रहे हैं और तुम हो कि कलम घसीटने में ही मगन हो। ''
मैंने पूछा -''सच बोलना, सारे-के-सारे पाप धुल गए हैं न ?''
प्रश्न सुन कर वे सोच में पड़ गए, फिर बोले- ''लगता तो ऐसा ही है. वैसे अब एक-दो बच भी गए होंगे तो कोई बात नहीं, फिर किसी पवित्र नदी में डुबकी लगा कर आ जाएंगे। अपने देश में ये बड़ी प्यारी व्यवस्था है. पाप करो और उससे मुक्ति भी पा लो. इधर पाप किया, उधर डुबकी लगा कर आ गए. इसलिए मैं बड़ा कॉन्फिडेंट रहता हूँ. नर्क जाने का कोई टेंशन नहीं। मैं नियमित रूप से तीर्थ यात्री भी करता हूँ. पाप के जमा होने का नो चांस।''
इतना बोल कर वे हँसे। फिर प्रसाद निकाल कर और कहा , ''इसे खा लो, तुम्हारे भी कुछ पाप धुल जाएंगे। तुम व्यंग्य का पाप करते हो.''
मैंने प्रसाद ग्रहण किया और अपने अज्ञात पापों को कम करने के बाद पूछा - '' आपके घर पर छापा पड़ा था, उसका क्या हुआ?''
वे मुस्कराए - ''उससे तो अपन की शान ही बढ़ गई भाई. मेरे सभी मित्रो के यहाँ छापे पड़े, मैं छूट रहा था। पत्नी भयंकर नाराज़ हो रही थी कि 'तुम किसी काम के नहीं हो. अभी तक अपने यहां कोई छापा नहीं पड़ा. मैं पड़ोस में मुंह दिखने लायक नहीं। किटी पार्टी में सब मुझे घूर कर देखते हैं'. पत्नी के दुःख के कारण मैं भी दुखी था, पर उस दिन छापा पड़ा तो अच्छा लगा. मामला 'सेटल' हो गया है''
मैंने उन्हें बधाई दी फिर पूछा- ''कुछ दिन पहले आप रिश्व्त लेते हुए रंगे हाथो पकडे गए थे, उस मामले का क्या हुआ?''
वे बोले- ''पवित्र स्नान करके लौटा हूँ. मामला रफा-दफा हो जाएगा। रिश्व्त के मामले को रिश्वत देकर दूर कर लेंगे भाई। यही तो रीत है. कउनो दिक़्कत नहीं। मैं कहता हूँ पकड़ा गया तो अच्छा हुआ, लोगो को पता चल गया. अब जो भी काम के लिए आता है, बिना बोले पैसे घर पहुँचा जाता है. जो होता है, अच्छे के लिए के लिए होता है.''
मैंने प्रसन्न हो कर कहा - ''आप तो काफी धार्मिक किस्म के जीव है''
वे बोले- ''ये धर्म-कर्म ही हमें पापमुक्त करते हैं. पिता ने यही ज्ञान दिया था मुझे। आप भी थोड़ा-सा धर्म-कर्म किया करें। जीवन को पापमुक्त करना ज़रूरी है, वर्ना नींद नहीं आती.''
मैंने कहा- ''पाप करना ही क्यों कि उसे धोने की नौबत आए?''
वे बोले- ''दुनिया में हम आए हैं तो पाप करना ही पड़ता है. पापी पेट और प्रदर्शन का सवाल है जी. ये महंगा मोबाइल, कीमती कार, ये आलीशान बंगला, शानोशौकत केवल वेतन से ही पूरे नहीं होते । अभी अपने घर के पीछे 'स्वीमिंग पूल' बनाया है. बड़ा शौक था मगर पैसे कहाँ से आते, सो पिछले दो सालों से अपना रेट बढ़ा दिया था. करना पड़ता है भाई, यही ज़िंदगी है. आप क्या जाने कि पाप करने के लिए खुद को कितना तपाना पड़ता है. कलेजा चाहिए पाप करने के लिए। सबके बस की बात भी नहीं।''
मैंने उनके चिंतन को नमन किया और पापमुक्त सज्जन के दर्शन करके घर लौट आया।