पानी से जब बाहर आई
इक मछली कित्ता पछताई
पानी से जब दूर हुई तो
मछली तूने जान गँवाई
मछली बच गई मगरमच्छ से
इंसानों से ना बच पाई
है शिकार पर बैठी दुनिया
मछली बात समझ न पाई
स्वाद की मारी इस दुनिया में
मछली ज़्यादा जी ना पाई
सावधान रहना तू मछली
जाल बिछा बैठे हरजाई
नदी तेरा घर है ओ मछली
भले जमी हो उसमे काई
मगरमच्छ वो बन गई इक दिन
देख स्वप्न मछली मुस्काई