फूलों की बात कीजिए कांटे निकाल कर
दो शब्द भी कहें पर उनको संभाल कर
अपनी ही राह पर चलें ये काम है सही
क्या मिल सका किसी की पगड़ी उछाल कर
अपनी लकीर को यहाँ लम्बी रखो सदा
ओ रे मनुज हमेशा तू ये कमाल कर
यह ज़िन्दगी हमें कब चल देगी छोड़ कर
सच्चाई है यही तू थोडा खयाल कर
हो काम न अच्छा तो पूछे नही कोई
होता है किसका नाम यूँ बैठेबिठाल कर
मर ही गया वो जीव बेचारा ये सोचिये
झटके से ज़िन्दगी ली या के हलाल कर
जो खून हो रहा है वो खून है पगले
मज़हब या धर्म छोड़ दे ना तू बवाल कर
इस मुल्क ने तुझे तो क्या-क्या नही दिया
तूने इसे दिया क्या खुद से सवाल कर