बेचारी में अभी तक आपने पढ़ा -ऋचा के शरीर पर नितिका ,अपना अधिकार कर लेती है ,बाबा उसे अपने तंत्र से छुड़ाने का प्रयास भी करते हैं किन्तु वो फिर से ,ऋचा को अपने कब्ज़े में लेकर ,उसे लेकर किसी क़ब्रिस्तान में पहुंच जाती है। बाबा और उसके पिता दोनों उसे खोजते हुए ,उसी कब्रिस्तान में ,से लेकर आते हैं किन्तु अभी ऋचा को कुछ भी नही मालूम ,वो अचेत अवस्था में है ,तब उसके पिता उसकी हालत देखकर ,अत्यन्त दुखी होते हैं ,तब बाबा से कहते हैं - इसे मुझसे बदला लेना है ,तो लेने दीजिये किन्तु मेरी बच्ची ठीक होनी चाहिए। तब उसे बाबा समझाते हैं -तुम्हारे शरीर में रहते हुए, यदि उसे मारती तब ऋचा तुम्हारे ख़ून के इल्जाम में जेल चली जाती। अब आगे -
ऋचा के पापा ,उसकी हालत देखकर ,बाबा से कहते हैं - अब इसे किसी अस्पताल में भर्ती कराना होगा वरना मेरी बच्ची मर जाएगी।
बाबा ऋचा की हालत देखकर बोले -इसकी ये हालत उसी के द्वारा हुई है ,और अभी भी वो इसका पीछा नहीं छोड़ेगी ,वो अब भी कभी भी आ सकती है।
किन्तु बाबा इसकी हालत तो देखिये ,क्या हालत हो चुकी है ?अगर इसको डाक्टर को नहीं दिखाया गया ,तो ये तो मर ही जाएगी और यदि उसने पुनः इसको अपने वश में करना चाहा -तो मुझे नहीं लगता ये बचेगी।
बाबा ऋचा की हालत देखकर परेशान तो थे ,नितिका की आत्मा तो इसके तन में आकर किसी न किसी का खून तो पीती ही रहेगी किन्तु ये बच्ची शायद नहीं बच पायेगी और ये नहीं रही, तब वो तो स्वतंत्र हो जाएगी। बाबा ने बहुत सोचने के पश्चात ,ऋचा को एक अस्पताल में भर्ती करा दिया।
उसकी बिमारी तो डॉक्टरों की समझ में भी नहीं आई ,जब उसके पिता ने बताया -मात्र दो दिनों में ही इसकी ये हालत हुई है ,उन्हें आश्चर्य हुआ , फ़िलहाल उसे ''ग्लूकोज़ ''की बोतलें चढ़ने लगीं। शाम तक ,ऋचा में चेतना लौटी। तब तक ,उसके पिता और ''भैरों बाबा ''उसके समीप ही रहे।
बाबा ने उसे ,समझाया - वो आत्मा ,तुम्हारे ऊपर फिर से आ सकती है ,अभी तुम सचेत रहना ,जब भी कभी तुम्हे इस बात का एहसास हो ,तुम्हारे तकिये के नीचे ,मैंने वो अभिमंत्रित यंत्र रख दिया है ,तुम उससे उसके ऊपर प्रहार करना और वो मुक्त हो जाएगी। ये यंत्र तनिक भी उसे छू गया ,उसका सर्वनाश होगा। अब तो ,प्रतीक्षा थी उसके आने की।
बाबा ने उसके ,पलंग को एक कच्चे सूत से लपेट दिया था ,उसके पलंग के चारों पांवों को बांध दिया था। अपनी तरफ से पूरी तैयारी थी। अब शाम होने लगी थी ,लोग अपने परिजनों से मिलकर जा रहे थे। रात्रि में किसी भी रिश्तेदार को अथवा जानने वाले को रुकने की आज्ञा नहीं थी।
अब तो ,अस्पताल के नियमों के अनुसार ,बाबा और ऋचा के पिता को भी ,घर जाने के लिए कहा गया। बाबा का तो पहले से ही ,इन अस्पताल वालों को, उनका आना अच्छा नहीं लग रहा था। कह रहे थे -यदि बाबा से ही इलाज़ कराना है तो ,उन्हीं से करा लें। किन्तु ऋचा के पापा के निवेदन करने पर, अनुमति दे देते हैं ,किन्तु अब तो उन्हें भी अस्पताल के नियमों को मानना होगा किन्तु बाबा जाने से इंकार कर देते हैं। तब अस्पताल के ,अधिकारी को बुलाया जाता है और वो बाबा को सांत्वना देते हैं कि कुछ नहीं होगा। यहां नर्सें हैं ,डॉक्टर हैं ,सभी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाते हैं।
बाबा बोले -जो आफ़त यहां आ सकती है ,उसका आपके डॉक्टर -,नर्सें भी कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे और हाँ ,वो इनका बहुत कुछ बिगाड़ सकती है। किन्तु किसी ने भी बाबा की बात पर विश्वास नहीं किया और उन्हें जाना ही पड़ा उन्होंने अस्पताल के बाहर ही ,अपना डेरा जमा लिया किसी को इसकी ख़बर भी नहीं हुई।
अब तो रात्रि भी गहराने लगी ,सभी अपने -अपने कार्य पूर्ण कर ,सोने की तैयारी में थे ,सभी मरीज़ों को उनके रिश्ते -नातेदार मिलकर जा चुके थे ,डॉक्टर भी एक बार आकर जा चुके थे। शाम की शिफ़्ट संभालने के लिए ,दूसरी नर्स और डॉक्टर भी आ चुके थे। धीरे -धीरे अस्पताल से लोग जाने लगे ,भीड़ भी कम होने लगी। रात्रि के दस बजे तक सब ओर शांति फैल चुकी थी। कुछ लोग ,अभी भी ऊँघ रहे थे।
बाबा भी अपने स्थान पर खा -पीकर लेट गए थे ,उन्होंने ऋचा के पिता को घर लौट जाने के लिए कहा किन्तु वो नहीं गए ,वहीं बाबा के समीप ही अपनी चादर बिछा ली। हालाँकि अब थोड़ी ठंड भी बढ़ने लगी थी किन्तु जो परेशानी उनके और उनकी बेटी के जीवन पर मंडरा रही थी ,उसके सामने तो ये ठंड कोई महत्व नहीं रखती। दिनभर के थके -मांदे थे ,ये भी मालूम नहीं ,मुसीबत कहाँ से और किस रूप में आ सकती है ? कब तक जगे रहते ,उनको भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। बाबा कुछ देर जागते रहे उसके पश्चात ,वो भी विश्राम करने लगे ,उन्हें भी लेटते ही नींद आ गयी।
उधर'' नितिका की आत्मा '' बाहर निकली और ऋचा को उसी स्थान पर न पाकर अत्यंत ही क्रोधित हुई ,वो ज़ोर -ज़ोर से हुंकारे भरने लगी। ऋचा की गंध हवा में महसूस करने लगी ,कुछ समय पश्चात ,कहकहे लगाने लगी ,शायद उसे ,ऋचा की गंध मिल गयी थी वो उस ओर ही चली जा रही थी। अब वो किसी अस्पताल के सामने थी किन्तु ये क्या ???वो उस स्थान पर पैर टिका नहीं पा रही थी यानि उसका अदृश्य शरीर ,उस स्थान के दरवाज़े के अंदर दाख़िल नहीं हो पा रहा था। तब उसने देखा -वहां पर ,अभिमंत्रित की हुई ,एक अदृश्य दीवार थी जिसको वो लाँघ नहीं पा रही थी। उसने अनेक प्रयास किये उसके पश्चात ,वो अस्पताल के पीछे की तरफ गयी और वहां उसने ,एक खिड़की खुली देखी ,उसके माध्यम से ,वो अंदर प्रवेश कर गयी।
अस्पताल के अंदर प्रवेश करते ही ,बाबा का अभिमंत्रित ,द्वार टूट गया ,इसका आभास बाबा को शीघ्र ही हो गया और वे उठ बैठे। वातावरण में ,उन्होंने अजीब सी गरमी और नकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया। अस्पताल के अंदर भी लोगो में अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी। नितिका ऋचा के कमरे में जा पहुंची। वो जानती थी - कि ये मेरी अपनी ही औलाद है किन्तु ये भी जानती थी, कि इसी के हाथों मेरी मुक्ति है और वो अभी मुक्त होना नहीं चाहती थी। उसे तो लोगों को तड़पाने में मजा आता था। क्या नीतिका अस्पताल में घुस पायेगी? क्या वो ऋचा को अपने साथ ले जायेगी, या फिर बाबा के बिछाये जाल में स्वयम ही फंस जायेगी, जानने के लिए पढ़ते रहिये -बेचारी