अभी तक आपने पढ़ा -सेठ देवीलाल जी ,शास्त्रीनगर के मकान नंबर अट्ठावन में दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं ,वहां कोई तो है ?जो नहीं चाहता ,कि कोई आये और यहां रहे। किन्तु देवीलाल जी को किसी का फोन आता है कि इस घर को किराये पर उठा दो। तब देवीलाल जी की मुलाकात ऋतू से होती है। जो उस शहर में नौकरी करने के लिए आई है और उस शहर से अनजान है। देवीलाल जी की पत्नी निर्मला देवी ,उनके गले में तावीज़ बांधती है और उन्हें उस घर में न जाने की सख्त हिदायत देती है। आज उस घर में सफाई हो रही है किन्तु कोई तो है जो उस काम को समाप्त नहीं होने देना चाह रहा है।अब आगे-
काम करते - करते ,सुबह से शाम होने को थी किन्तु काम समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था। तभी उन दोनों में से एक को एहसास हुआ कि कोई साया उसके समीप से ही निकलकर गया। वो बाहर आया ,किन्तु बाहर तो सड़क ही सुनसान पड़ी थी। वो अंदर आया और बोला -अब तो शाम होने वाली है ,अब हमें चलना चाहिए। उसे एक अनजाना सा भय सता रहा था।
जिसने देवी माँ का टीका लगाया था ,वो अभी इन बातों से अनजान था। वो बोला- भोला मैं बाहर का बचा काम देखता हूँ ,इतने तुम ये सफ़ाई का सामान अंदर गोदाम में रख आओ!
ठीक है ,कहकर भोला सामान लेकर गोदाम में गया। वहां कुछ पुराना सामान पड़ा था ,रस्सी ,कुर्सी कुछ डिब्बे ,उसने वो सामान गोदाम में रखा , जैसे ही वापस लौटने लगा , अचानक चूँ चूँ की आवाज करते हुए,एकदम से दरवाजा बंद हो गया। भोला तो पहले से ही डरा हुआ था ,आज सारा दिन उसके साथ ,कई हादसे जो हो गए थे। उसकी चीख़ निकली ,उसने दरवाजे को खोलना चाहा किन्तु वो खुला नहीं। बन्द कमरे में उसकी दहशत बढ़ गयी , वो बाहर निकलने के लिए, इधर से उधर भागने लगा , अपने साथ के सहकर्मी को भी आवाज लगाई किंतु वो तो अपने कार्य में व्यस्त था । तभी पीछे से एक रस्सी ने, उसके गले को अपनी चपेट में ले लिया वो ऊपर की तरफ खिंचा जा रहा था। वह यह देखने का प्रयास कर रहा था कि आखिर कौन उसके साथ ऐसी हरकत कर रहा है?अब उसके गले से आवाज भी नहीं निकल रही थी। वो खुलने के लिए छटपटा रहा था। उसकी आँखें दम घुटने के कारण बाहर को आ रही थी।
जब बाहर वाले ने देखा कि भोला ,अभी तक नहीं आया तो वह भी अंदर गोदाम की तरफ चल दिया। दरवाजा अंदर से बंद था। पहले तो वापिस चल दिया ,सोचा चला गया होगा ,फिर सोचा -जाता तो क्या मुझे नहीं दिखता या बताता ,उसने गोदाम का दरवाजा पीटा और चिल्लाया -भोला.... भोला..... किन्तु भोला की तो आवाज ही नहीं निकल रही थी। तभी उसका पैर किसी डिब्बे पर लगा और वो डिब्बा गिर गया अब तो रामभरोसे को विश्वास हो गया ,अवश्य ही भोला यहां है।उसने दरवाजे को खोलने का बहुत प्रयास किया किंतु दरवाजा, ट्स से मस्उ न हुआ तब उसने दरवाजा तोड़ने का निर्णय किया , उससे पहले ही, दरवाजा अपने आप ही खुल गया और भोला की रस्सियाँ भी। रामभरोसे ने जब अंदर जाकर देखा -तो भोला नीचे पड़ा था और डर उसके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था। इससे पहले कि राम भरोसे कुछ कहता या करता,अचानक ही भोला तेजी के साथ उठा और बाहर की तरफ दौड़ा। पीछे से रामभरोसे भी उसके पीछे -पीछे था।
आज रविवार है ,आज ऋचा अपना सामान लेकर , उस घर में प्रवेश करती है ताकि अपना सामान अच्छे से जमा ले। किन्तु घर की हालत देखते ही ,उसे देवीलाल पर क्रोध आया ,अभी तक सफाई भी नहीं करवाई। वो अपना सामान लगाती है ,सामान के नाम पर उसके पास है ही क्या ?उसके कुछ वस्त्र और उसकी आवश्यक वस्तुएं। इतना बड़ा घर, उसकी सफाई उससे अकेले तो नही हो पायेगी, यही सोचकर,वो अपनी जरूरत के हिसाब से घर की सफाई करती है। घर का मंदिर धोती है ,बस इतनी सी ही उसकी आवश्यकता थी। घर काफी बड़ा था ,वो सोचने लगी ,कोई और दोस्त भी इधर आ जाये तो किराया भी आधा -आधा हो जायेगा। जब उसने सम्पूर्ण घर देखा तो सोचा -इसमें तो कई लोग रह सकते हैं किन्तु ये घर इस तरह निर्जन क्यों है ?यहां तो कोई किसी से मतलब ही नहीं रखता, किससे पूछूं ?अभी वो चाय बनाकर पीने ही जा रही थी , तभी उसके फोन की घंटी बजी -उधर से देवीलाल जी की आवाज आई -घर पसंद आया।
क्या ख़ाक पसंद आया ?मैंने आपसे एक दिन पहले ही घर की सफाई के लिए कहा था किन्तु घर तो ऐसे का ऐसा ही पड़ा है।
क्या..... मैंने तो दो लोग घर की सफाई के लिए भेजे थे देवीलाल आश्चर्य से बोला। मैं अभी पता लगाता हूँ। कहकर उसने फोन काट दिया । देवीलाल जी स्वयम् ही उन दोनों के घर की तरफ जाते हैं क्योंकि उन्हें भी मन ही मन डर था कि कहीं दोनों के साथ कुछ अनुचित न हो गया हो।साथ ही उनका मेहंताना भी दे आयेंगे।उनमें से कोई भी, पैसे लेने नही आया।मजदूरों का तो रोज का खाना- कमाना होता है, एक दिन भी पैसा न मिले तो घर का चूल्हा न जले।देवीलाल ने रामभरोसे से पूछा - भई तुम लोग अपनी मजदूरी लेने भी नही आये क्या बात है ? सब खैरियत तो है ।
रामभरोसे ने बताया -भोला को तो बहुत तेज बुखार है और वो बड़बड़ा रहा था कि वहां कोई तो है ,काफी डरा हुआ है किन्तु रामभरोसे भी समझ नहीं पा रहा था -कि भोला इस तरह की हरकतें क्यों कर रहा है ? रामभरोसे ने देवीलाल जी को बताया -जबसे वे लोग उस घर से आये हैं ,तब से उनकी आपस में कोई बात ही नहीं हुई। भोला बताता तो जब ,जब वो बताने की हालत में होता।
क्या तुमने वहाँ कुछ देखा देवीलाल जी ने उससे प्रशन किया ।
नहीं मैने तो कुछ नही देखा किंतु जब ये अंदर गोदाम में सामान रखने गया था तभी ये , न जाने कैसे ? वहीं बन्द हो गया था। मुझे लगता है, शायद ये उसी के कारण डर गया है ।
रामभरोसे की बात सुनकर, देवीलाल जी का मन अंदर ही अंदर दहल गया -अवश्य ही ,भोला के साथ कुछ तो हुआ होगा ,बेचारी बच्ची को मैंने घर दिलवा तो दिया है ,अब भगवान ही उसकी रक्षा करेगा।
ऋचा की उस घर में , रात्रि कैसे बीती ? क्या उसे भी वहाँ कुछ कटु अनुभव हुए या अन्य लोगों की तरह, वह भी वहाँ से रातों रात भाग खड़ी हुई? जानने के लिए पढ़िये- बेचारी