मुहब्बत ग़र समझता वो तो यूँ रूठा नहीं होता
अलि के चूम लेने से फूल झूठा नहीं होता
ना संग जाएगा कुछ तेरे ना संग जाएगा कुछ मेरे
समझता बात ये ग़र वो साथ छूटा नहीं होता
आईने की छवि घर को कभी रुसवा नहीं करती
तेरा पत्थर ना लगता तो कांच टूटा नहीं होता
दोष सब देते हैं मुझको मगर सच भी तो पहचानो
चमक होती ना हीरे में तो फिर लूटा नहीं होता
प्यार को कह नहीं सकते ये तो महसूस होता है
अलग आवाज़ देता है घट जो फूटा नहीं होता
ज़मीं को छोड़ कर ये बीज ग़र सूरज को ना तकता
साथ पत्तों के बगिया में शिशिर बूटा नहीं होता