तुम मेरी ज़िन्दगी में युँहि हौले से आ गए
सावन के मेघों की तरह अम्बर पे छा गए
तक़दीर के जुए ने मुझे यूँ तो छला किया
लेकिन मेरा नसीब था जो तुमको पा गए
ग़मगीन हुईं महफिलें इक साथ जब छुटा
लेकिन तुम्हारे गीत मेरे कानों को भा गए
छीना तुम्हें पहलू से मेरे मज़बूर कर मुझे
लेकिन कभी भी तुम मेरे ख्वाबों से ना गए
जीते हैं सभी ज़िन्दगी बस मतलबों के साथ
खुद के लिए वो कितने सितम मुझ पे ढा गए
मधुकर से जब भी पूछा किए दोस्तों नें राज़
गजलें वो तेरे हुस्न की महफिल में गा गए