मुहब्बत जब किसी से करके मैंने सपने सजाए हैं
तूफानों ने सदा आकर मेरे दीपक बुझाए हैं
भले ही कोई अपनी बात से कितना भी मुकरा हो
मैंने वादे किए जो भी यहाँ हरदम निभाए हैं
वो बैठे हैं यहाँ दीवार ओ दर ऊँची किए इतनी
बड़ी शिद्दत से जिनके बोझ तो मैंने उठाए हैं
वो ही अब सामने पड़ते हैं तो बच के निकलते हैं
जिन्हें राहों को चुनने के हुनर मैंने सिखाए हैं
मधुकर ज़माने में यही बस देखा है मैंने तो
हाथ छिल जाते हैं कांटें किसी के जब हटाए हैं