करूँ मैं बात अब किससे ना मेरा कोई साथी है
जले अब लौं भी ये कैसे सूखे दीपक में बाती है
यहाँ मौसम बदलने से हवा का रुख बदलता है
कभी देती थी जो ठंडक वही अब घर जलाती है
जिसे अपना समझ मैंने हर इक राज बांटा था
मुझे गैरों के जैसा मान वो सब कुछ छुपाती है
जमाने ने कहा मुझसे मैं उसकी बात भी सुन लूँ
मेरी मनमानियाँ लेकिन अब मुझको रुलाती है
जीवन की राह में मधुकर सभी सपने सजाते हैं
खिलती बहारें उनमें मगर किस्मतों से आती हैं
शिशिर मधुकर