मैंने सोचा बहुत मैं भुला दूँ तुम्हें लेकिन ये मुझसे हो ना सका
तेरी छवियां ना दिखला दें आंसू मेरे मैं तो जहाँ में रो ना सका
उल्फ़त की राहों में हरदम यहाँ संगदिल ज़माने ने घायल किया
मैं तड़पा चाहे जितना मगर कांटे औरों की राहों में बो ना सका
लाख तोहमत लगीं दामन पे मेरे और हम आखिर जुदा हो गए
वो समझेंगे क्या मुहब्बत मेरी मैं तेरा तसव्वुर तो खो ना सका
मुश्किल से मिलता है साथी कोई सयानेपन से भरे इस संसार में
मुझे गम है तेरे उस समर्पण को मैं प्रेम से अपने भिगो ना सका
जब से तोड़ा है दिल अपनों ने मेरे मुझे नफ़रत जहाँ से ऐसी हुई
बंद आँखें चाहे जितनी करीं मधुकर तो मगर फिर सो ना सका
शिशिर मधुकर