देख लो ना बिन तुम्हारे कैसा मेरा अब हाल है
हर एक पल बस यूँ लगे तन्हा गुजरता साल है
हसरत तेरे नज़दीक रहने की फना सब हो गईं
काटे नहीं कटता है जो रिश्तों का ऐसा जाल है
अब ऋतु आ के चली जाती है बिन उम्मीद के
फूलों से सजती नही उजड़ी पड़ी जो डाल है
लाख कोशिश तुम करो कुछ बिगड़ता ही नही
पास में जिसके यहाँ उल्फ़त की सच्ची ढाल है
तुम गए मधुकर तो फिर सुर भी ऐसे गुम हुआ
नीरस हुईं है जिंदगी मिलती नहीं कोई ताल है