नज़र मिलती है जब तुमसे तो तुम धीरे से हँसते हो
गुमां होता है ना तुमको तुम्हीं इस दिल में बसते हो
नशा होता है कुछ ऐसा मुहब्बत का तो दुनिया में
पता होता है पीड़ा का मगर तुम फिर भी फँसते हो
लाख पहरे लगे हों दिल की सदा तो आ ही जाती है
मधुरता बढ़ती जाती है डोर जितना भी कसते हो
फक़त दूरी बढ़ाने से दूरियाँ बढ़ ना जाती हैं
छवि बस आँखों में भर के ही तुम हरपल तरसते हो
भले ही पास में मधुकर मेरे तुम आ ना पाते हो
मैं तुमको पा ही जाती हूँ जो मेघा बन बरसते हो