मुहब्बत के मैंने इस जीवन में जो भी खेल खेले हैं
सभी में हार पाई है और बस अब तो बैठे अकेले हैं
दर्द सहने की शक्ति वक्त संग जब बढ़ती जाती है
समझ लो ऐसे लोगों ने दिलों पर तीखे वार झेले हैं
जानते हैं वो सब ये राज़ इश्क़ में कुछ नहीं मिलता
गगरिया प्रेम की गैरों पे मगर वो फिर भी उड़ेले हैं
ज़िन्दगी बीत जाती है सज़ा मुकम्मल नहीं होती
जुर्म ए उल्फ़त में अक्सर यहाँ मिलती वो जेलें हैं
कभी रहते नहीं आबाद मधुकर एक जगह पर जो
स्वार्थ भरी ज़िंदगानी में मुहब्बत कुछ ऐसे मेले हैं
शिशिर मधुकर