वो तेरी शर्म और हया और वो तेरा मुझ पर करम
मैं नहीँ भूला हूँ कुछ भी पर तुमने बदला है धरम
याद कर तू वो समय इस पहलू में तुम चहका किये
क्या हुआ जो भूल बैठे उल्फ़त की तुम सारी कसम
जीवन की लम्बी राहों में जद्दोजहद तो बड़ी आम है
हर ईक ग़म भूला था मैं जो रुख पर गिरी साँसें नरम
कभी मिलते रहे खिलते रहे और गुनगुनाते भी रहे
तेरे दिल में हम आबाद हैं अब मिट गए सारे भरम
आसां नहीँ होता है मधुकर उन रिश्तों को पूरा भूलना
दूरी ना हो जब बीच में और बाकी ना हो कोई शरम
शिशिर मधुकर