मुहब्बत ना हो जब बीच में तो फिर बात क्या करें
तड़पे ना जो मिलन को उससे मुलाक़ात क्या करें
दिन ही जब इस शहर में मुश्किलों से गुज़रता हो
वहां किस के सहारे जी लें और कहो रात क्या करें
ठंडी ओस की बूँदें भी चमक जाती हैं मोतियन सी
अगर संग ही वो ना ठहरें तो फक़त पात क्या करें
जहाँ पत्थर के सनम हैं वहां खुशियां नहीं आती हैं
साथी ना हो जब काम का महज़ जज़्बात क्या करें
जब डर हो अपनों के ही बिखर जाने का मधुकर को
तुम ही कहो फिर ऐसी जगह कोई आघात क्या करें
शिशिर मधुकर