गुजर गया अब के ये सावन बिना कोई बरसात हुए
सब शिकवे हमने कह डाले बिन तेरी मेरी बात हुए
प्यार लुटा के बैरी होना सबके बसकी बात नहीं
दिल की हालत वो ही जाने जिसपे ये आघात हुए
मुझे शिकायत है उस रब से जिसने तुमको भेज दिया
प्यासे को नदिया जल जैसे तुम भी मेरी सौगात हुए
हाथ पकड़ के फिर ना छोड़ा ताकि तुम आबाद रहो
ये मत समझो मुझपे कोई तुम से कम प्रतिघात हुए
सबका अपना किस्सा है और सबकी अपनी मज़बूरी
बेरहम ज़माना क्या जाने चोटिल कितने जज़्बात हुए
नया सवेरा उजली किरण ले फिर से आएगा मधुकर
तीन पहर हो गए हैं पूरे अब तो काली अँधेरी रात हुए