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भाग 1

21 जुलाई 2022

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एक भूली हुई दास्तान उसे याद आती है  ।  

वह तो एक बंजर जमीन से आया था ।  खामोश  आकर्षणों की दुनिया से जहां कहां कुछ भी नहीं जाता । मन ही मन में कुछ अरमान करवटें लेते हैं । अनबूझी इच्छाएं आती और चली जाती हैं और कस्बाई सपने छतों पर पहले कपड़ों की तरह धूप उतरते ही बटोर लिए जाते हैं कुछ अनकहे धुंधले से अक्स स्मृतियों में उलझी रह जाते हैं जो ना घटते हैं ना बढ़ते हैं बस पानी की दाग की तरह वजूद के निवास पर नक्श हो जाते हैं

उसका पूरा कस्बा उसके कस्बे का अपना मोहल्ला मोहल्ले की कई खिड़कियां भी उसे मौन हसरत से देखती दिखाई दी थी । कभी-कभी बरसात के दिनों में लौटते हुए पाओं के निशान दिखाई पड़ जाते थे, ज्यादा बारिश हुई तो निशान पहले तो भरी आंख की तरह डूब जाते थे फिर देखते देखते मिट जाते थे, वापस गए पैर फिर नजर नहीं आते थे, कुछ आंखें थी जो कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर उन्होंने कभी कुछ कहा नहीं था | 

कहीं कोई काजल लगी आग उलझी थी । किसी खिड़की में हल्की सी कोई परछाई किसी में इशारा करती कोई उंगली । कहीं शर्मा के लौटते हुए अंधेरे अरमान और कहीं किसी मजबूरी की कोई दास्तान ……..

 अजीब दिन थे

अजीब दन थे ।

 नीम के झरते हुए फूल के दिन  । 

कनेर  में आती पीली कलियो  के  दिन  । 

न बीतने वाली दोपहरियो  के दिन । 

और फर एक के बाद एक, लगातार बीतते हुएदशाहीन  दिन । 

उन दिनों भविष्य कहीं था ही नहीं एक व्यर्थ वर्तमान साथ था । जो बस चलता जाता था वह आजादी से ठीक पहले का दौर था । रेलगाड़ियों के आरक्षण की सुविधा और सिस्टम नहीं था । अब उसे याद नहीं विद्या शायद साइंस में थी, पर छुट्टियों साथ साथ होती थी, इसीलिए वह इलाहाबाद स्टेशन पर मिल ही जाते थे । विद्या फतेहगढ़ की थी । तीज त्यौहार और फिर गर्मियों की छुट्टियां अपने अपने घर जाने के लिए एक आध बार तो उससे ऐसे ही मुलाकात हुई फिर जब भी कोई छुट्टी आती तो स्टेशन पर एक दूसरे का इंतजार करने लगे ना मालूम या कैसा लगा था । कि प्लेटफार्म पर एक तब तक रुका रहता था। जब तक दूसरा नहीं आ जाता था, अनकहे तरीके से या तय हो गया था, कि छुट्टियां छुट्टी होने वाले दिन की सुबह पहले पैसेंजर गाड़ी से ही सफर किया जाएगा उन दिनों भी कुछ तेज एक्सप्रेस गाड़ियां चला चलती थी पर उन्हें पैसेंजर की ही पसंद थी वह धीरे धीरे चलती थी और हर स्टेशन पर रूकती थी

उन दिनो को साथ-साथ सफ़र करते, छोटे-छोटे स्टेशनो  के नाम रट गए थे। अब बमरौली आएगा। अब मनौरी, अब सैयद सरावां और फर भरवारी और सराथू। उसके बाद फतेहपुर। और फर...फर कानपुर ! स्टेशनो  के नाम के साथ-साथ पढ़ते थे और कब  स्टेशन पर कितनी जल-छमता वाली टंकी विशाल कुकुरमुमुत्ते की  तरह खड़ी है, यह भी उन्हें  याद हो गया था। इंजन  स्टेशन पर पानी लेगा, यह भी उन्हें पता था। कुछ ऐसा भी था जो दोनो  को एक साथ पता था। उनके मन की  अन कही इच्छाएं के पल एका एक एक साथ जुड़ जाते थे। अब यही, जैसे भरवारी स्टेशन के समोसे ! अभी वा कहने को ही होती थी क वह बोल पड़ता था–खट्टी चटनी...या फर फतेहपुर के दही के पकौड़ या फिर मीठी चटनी। कभी-कभी वह भागते पेड़ एक को सहसा एक साथ देखते थे। फर कुछ स्टेशन का साथ और...चाहते तो दोनो नहीं थे, पर कानपुर आ ही जाता था। वह उतर कर फतेहगढ़ वाली गाड़ी बदलती थी। कानपुर से उसे छोटी लाइन पकड़नी होती थी, जसका उसका प्लेटफार्म    आखरी था में बड़ी लाइन के कई प्लेटफार्म थे। उन दन दिनों ‘टाटा’ और ‘बॉय-बॉय’ नहनहीं  होता था। फ्लाइंग किस तो था ही नहीं ।  खामोशी की  गहराई ही शायद लगाव का पैमाना था। वह  चुपचाप उतरती थी। वह उसका झोला या टीन  का छोटा बक्सा या किताब का बस्ता  उठाकर थमा देने में  मदद कर देता था। उन दन लेट होने पर गाड़याँ भी एक-दूसरे का इतज़ार कर लेती थी वह अक्सर ’कहकर पुल पर चढ़कर अपनी गाड़ीवाले प्लेटफार्म  पर चली जाती थी। वह उसे छोड़ने या विदा  देने नहीं  जा पाता था,  क्योंकि मेन लाइन की गाड़ी छूट सकती थी। कानपुर से उसका सफ़र शकोहाबाद जंक्शन तक जारी रहता था, जहाँ से वह ब्रांच लाइन क की गाड़ी पकड़कर अपने मैनपुरी पँहुचा करता था। माँ के पास। शकोहाबाद से मैनपुरी तक के तीन स्टेशन के नाम तो उसे याद थे, पर कहाँ, किस स्टेशन पर पानी की टंकी  थी और छोटे से सफर में कौन से पेड़ साथ दौड़ते थे, वे उसे याद नही  थे। वा भी सफ़र  में  साथ होती, तो शायद उसे वे पेड़ याद रहते। छुट्टियों से लौटने का दिन और इलाहाबाद तक जाने वाली पैसेंजर गाड़ी भी अनकहे तरीके से तय हो गई थी वह लौटते समय कानपुर तक में लाइन की गाड़ी से आता था लेकिन कानपुर से पैसेंजर ही पकड़ता था छोटी लाइन से आकर विद्या उसे प्रतीक्षा करती मिलती थी

मिलना प्रतीक्षा और साथ  साथ साल सफर करना यह  2 साल तक चलता रहा।  फिर वह वर्ष भी आया गर्मी की लंबी छुट्टियां । हुई वही इलाहाबाद स्टेशन। वही पैसेंजर गाड़ी लेकिन इस बार स्टेशनों का नजारा कुछ बदलता हुआ था ।  गाड़ी में चढ़ने वाले मुसाफिर औसत से ज्यादा खामोश है । सैयद सरावां स्टेशन पर जब स्टेशनों से ज्यादा भीड़ मिली ।  सफर में ज्यादातर मर्द ही मिलते थे। पर इस बार उनके साथ औरतें और बच्चे भी थे। तीन के बक्सों गौरव गटरी ओं बूटियों वाला सामान भी जरूरत से ज्यादा था ।  गाड़ी छुट्टी तो प्लेटफार्म पर रुककर कोई खुदा हाफिज कह कर विदा करने वाला नहीं था। मुसाफिरों में चलती आपसी बातचीत के दौर दौरान पता चलता था । कि वह किसान खानदान पहले अलीगढ़ जा रहे थे ।  वहां से पाकिस्तान चले जाएंगे ।  

आखिर कानपुर स्टेशन का याद गुजरने लगा गाड़ी की रफ्तार धीमी पड़ने लगी विद्या को तो यही उतरना था । प्लेटफार्म आया विद्या उत्तरी हमेशा की तरह उतर कर उसने विद्या को सामान थमाया तब विद्या ने इतना ही कहा था । शायद आगे की पढ़ाई के लिए मैं अगले वर्ष ना आ सकूं क्यों घरवाले यही चाहते हैं । या एक से सूचना थी जिसने जिससे दोनों ने ही कुछ असहज महसूस किया था । उनके बीच अलिखित और अव्यक्त भावनाओं का रिश्ता तो शायद बहुत गहरा था परंतु कहीं कुछ ऐसा नहीं था जो उन्हें कोई उत्तर मांगने के लिए विवश करें। 

आखिर छोटी लाइन की अपनी गाड़ी पकड़ने के लिए वह पुल पर चढ़ने लगी विद्या की गाड़ी छूटने का समय हो रहा था और गाड़ी उसकी गाड़ी भी छूटने को थी और बस तब इस दास्तान में इतना ही हुआ था।  कि पुल पर पहुंचकर अपने प्लेटफार्म की तरफ मरने से पहले विद्या ने अपना रुमाल ऊपर से गिराया था । उसकी गाड़ी उसे उसी समय आखिरी सिटी देकर खिसकने लगी थी। उसका डिब्बा भी काफी आगे था । उसने रुमाल को गिरते हुए देखा था उसके लिए वह अटका भी था । पर प्लेटफॉर्म छोड़ती गाड़ी को वह नहीं छोड़ पाया था सफर तो सफर था और फिर डिब्बे में उसका  झोला लावारिस पड़ा था। जिसमें उसकी किताबें कापियां और कल में थी। 

विद्या का रुमाल तो वह नहीं उठा पाया पर अपने सफर को भी बार नहीं तोड़ पाया चलती गाड़ी में वह चढ़ा और अपनी जगह आकर बैठ गया आगे का सफर जारी था। उसका भी और उन साथियों का भी जो अलीगढ़ होते हुए पाकिस्तान जा रहे थे। विद्या का भी जो गाड़ी बदलकर फतेहगढ़ की ओर चली जा रही होगी बैठे बैठे भाई यही सोचता रहा कि अगले साल विद्या नहीं आएगी इसका सीधा मतलब यही है कि उसके घर वालों ने कही उसका रिश्ता तय कर दिया होगा। और इन्हीं गर्मियों में उसकी शादी हो जाएगी शिकोहाबाद जंक्शन आया तो वह उतर पड़ा उसे मैनपुरी वाली गाड़ी पकड़नी थी  ।  पाकिस्तान जाने वाले मुसाफिरों का सफर अलीगढ़ की तरफ जारी था। उन गर्मियों के बाद फिर विद्या उसे नहीं मिली पता नहीं वह कहां किस सफर पर निकल गई ।  

बस इतना जरूर हुआ कि जिंदगी के इस लंबे सफर में जब भी वह कानपुर स्टेशन से गुजरा तो वह रुमाल हमेशा उसे गिरता हुआ दिखाई देता रहा, दिखाई ही नहीं देता रहा व रुमाल सचमुच गिरता रहा पर रुमाल आज भी गिरता है।  फिर कई बसों के बाद जब वह कई नौकरियों और कई शहरों को छोड़ता हुआ।  शहर मुंबई में टिक कर काम करने लगा तो उसे एक अजीब सा रहस्य भरा खत मिला उसका लिफाफा खुद अपने सफर की कहानी बता रहा था । वह उसके पिछले कई  पतों  से रीडायरेक्ट होकर उस तक पहुंच गया था उसने कई बार कटे हुए पतों को देखा था सिर्फ उसका नाम ज्यों का त्यों था । 

मेहरबान हाथों ने अलग अलग लिखावट में उसका नाम पता दर्ज किया था ।तब उसे लगा था कि खत अगर मन से भेजा जाए तो कई जन्मों के बाद भी पहुंचने वाले तक पहुंच ही जाता है। पांच पतों से लौटते हुए लिफाफे को उसने बहुत इतिहास से खोला था मजमून पढ़ा तो रहस्य बहुत गहरा गया था लिखा था । अजीब ए आलिया किसी को दिल देकर दिल कोई नवाज तुझे मुखवा क्यों हो ना हो जब दिल ही सीने में हो तो फिर मुंह में जुबान क्यों हो  क्या गम ख्वार ने रुसवा लगे आग इस मोहब्बत को ना लाए दाग जो गम की वह मेरा राजदा क्यों हो वफा कैसी कहां का एक जब सर फोड़ना ठहरा तो फिर संगो दिल तेरा ही आस्था क्यों हो खुदा हाफिज खत में कोई नाम नहीं था। पता भी नहीं था उसे खत के संबोधन ने भी चौक आया था एकाएक उसका ध्यान विद्या की ओर गया था ।

 मजमून में बात की जो अनुरोध थी वह उसकी हो सकती थी और फिर अजूबे आलिया वाला संबोधन शायद वाह उसकी सादगी उसकी जिंदगी की खोज खबर लेती रही हो अंदाज से उसने पहला पता लिखा हो कि शायद खत पहुंच जाए फिर तो मुखपत्र मेहरबानो ने बदले थे लेकिन सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाली बात तो यह थी कि विद्या तो साइंस की विद्यार्थी थी उसे हिंदी तो फिर भी आती थी लेकिन उर्दू का तो एक हल्क भी नहीं आता था और फिर अंत में खुदा हाफिज नहीं नहीं या विद्या तो हो ही नहीं सकती थी या और कोई भी हो विद्या नहीं हो सकती और तब यह दास्तान और ज्यादा रहस्यमई बन गई थी आश्चर्यजनक और अजीबोगरीब हुआ याद था कि

Kishore Jain

Kishore Jain

असंख्य भूलें हैं ।लगता सहै संपादित किया हुआ नहीं है।पढ़ने मं मजा नहीं आ रहा है ।

22 सितम्बर 2022

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रचनाएँ
कितने पाकिस्तान
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कितने पाकिस्तान हिन्दी के विख्यात साहित्यकार कमलेश्वर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान के बँटवारे और हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर आधारित है। यह उनके मन के भीतर चलने वाले अंतर्द्वंद्व का परिणाम माना जाता है।'कितने पाकिस्तान' कमलेश्वर का लिखा हुआ एक प्रयोगवादी उपन्यास है। इस उपन्यास को 2003 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था। यह उपन्यास बाकी उपन्यासों से कई मामलों में अलग है। पहला, इसमें सामान्य घटनायें, जैसे उपन्यासों में होती हैं, नहीं हैं, बल्कि ऐतिहासिक घटनाओं का लेखक के नज़रिये से वर्णन है। क्योंकि सारा कथानक उसी के इर्दगिर्द घूमता है। उपन्यास में सदियों से चले आ रही हिंसा और मारकाट के प्रति गहरा क्षोभ है। पात्रों की इस कमी को इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्तियों को कटघरे में लाकर दूर किया गया है। अगर उपन्यास का सार निकालने की कोशिश की जाए तो यही आयेगा कि विभाजन अब बंद होने चाहिये।
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भाग 1

21 जुलाई 2022
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एक भूली हुई दास्तान उसे याद आती है  ।   वह तो एक बंजर जमीन से आया था ।  खामोश  आकर्षणों की दुनिया से जहां कहां कुछ भी नहीं जाता । मन ही मन में कुछ अरमान करवटें लेते हैं । अनबूझी इच्छाएं आती और चली जा

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भाग 2

21 जुलाई 2022
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- हुआ या था नहीं स !  पहले या सुनिए कि हुआ क्या है...... उसने चौक कर आवाज की तरफ देखा था उसका एक में 3 सहायक स्टोनो और अर्दली महमूद उसके सामने खड़ा था।  उसके हाथ में टेलीप्रिंटर से आई खबरों के कुछ कु

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भाग 3

21 जुलाई 2022
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खत भेजने के बाद अभी बहुत परेशान था । वह सोच रहा था कि उसके उद्गार और विचार कहीं देश की रक्षा सुरक्षा के नाम पर दूसरों के लिए मौत तो पैदा नहीं करते क्या एक के जीवित रहने के लिए दूसरे की मौत जरूरी है?

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भाग 4

21 जुलाई 2022
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और तभी यूरोप के सम्राट गिल गमेंश की गूंजती आवाज आई -  - मैं पीड़ा से लड़ लूंगा यातना सहूँगा  कुछ भी हो मैं मृत्यु को पराजित कर लूंगा मैं मृत्यु से मुक्त की औषधि खोज कर लाऊंगा !  सम्राट गिल गणेशा की

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भाग 5

21 जुलाई 2022
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वहां मौजूद तमाम देवताओं की चिंता का एक स्वर में अनुमोदन किया और देवी तान्या ने तब उन्हें आगाह करने वाला भाषण दिया दजला फरात और डेन्यूब की परा धरती के समस्त देवताओं तुम सब आज चिंतित हो क्योंकि मनुष्य म

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भाग 6

29 जुलाई 2022
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उसी कहानी में शामिल है बूटा सिंह और रेतपरी किया की  यह कहानी राजस्थान का तपता रेगिस्तान कोई चीखा बन गया साला पाकिस्तान आसमान की आंख सूखी हुई थी उनमें एक बूंद भी पानी नहीं था मौसम विभाग के वैज्ञानिक

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भाग 7

29 जुलाई 2022
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बूटा सिंह जब जीने के लिए कपड़े लेने निकला था पाकिस्तान नाम की लकीर तो फिर चुकी थी मौसम विशेषज्ञों की भविष्यवाणी सही साबित हुई रक्त की वर्षा हो रही थी रेत परिचय नहीं अभी भी गर्दन तक रेत में दबी हुई है

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भाग 8

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आतंकी देवताओं ने धरती की ओर देखा वह सकते में आ गए जो लोग के समस्त सफेद पंखों वाले पंछी देवदासी रोना को लेकर मित्रों पर उतर रहे थे "के समय उसके साथ अभी सभी तरह के पंछी पखेरू शामिल होते गए थे उनमें अंजन

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भाग 9

29 जुलाई 2022
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बूटा सिंह ने कपड़ों की जोड़ी लाकर जीने के पास रख दिया और पूछा निकालूं तुम बाहर जाओ मैं निकाल आऊंगी धीरे-धीरे जैनेब रेट टिकट दे से निकल आई उसने तार-तार हुई कुर्ती को उतारा और वही संभाल कर रख दिया ना जा

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भाग 10

29 जुलाई 2022
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बूटा सिंह ने कपड़ों की जोड़ी लाकर जीने के पास रख दिया और पूछा निकालूं तुम बाहर जाओ मैं निकाल आऊंगी धीरे-धीरे जैनेब रेट टिकट दे से निकल आई उसने तार-तार हुई कुर्ती को उतारा और वही संभाल कर रख दिया ना जा

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भाग 11

6 अगस्त 2022
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उसके  अदालत के दरवाज़े पर रक्त  दस्तके  पड़ने लगी । वह दस्तक  से परेशान था। परेशान नही  पागल। और फिर दस्तक  पर दस्तक  ।पश्मी सीमांत से एके-47 चीनी राइफल ने दस्तक दी । हथियार बनेंगे तो चलेंगेभी ।  उत्तर

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भाग 12

6 अगस्त 2022
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वह कौन सी तारीख थी।  इब्राहिम लोदी से मैंने पार्क पानीपत की लड़ाई 20 अप्रैल 1526 को जीती थी और रजत 15 जुम्मे के दिन यानी 27 अप्रैल 1526 को मारे मेरे नाम का खुतबा पढ़ा गया था या खुद बा मौलाना महमूद और

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भाग 13

6 अगस्त 2022
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अजीम फैजाबाद स्टेशन पर उतरा ही था कि वह धमाकेदार झापड़ उसके पड उसके पड़ा स्टेशन की दीवार पर लिखा हुआ नारा सामने खड़ा था बोला फैजाबाद आए हो तो पहले इसे पढ़ पढ़ो इसमें लिखा था कि अपने धर्म स्थानों का अप

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भाग 14

6 अगस्त 2022
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बस आग लगाते घूम रहे हैं सब ही ना ही चाह सोजत की भारत का क्या होगा पहले ही या हिंदू मुसलमान को लगवाना चाह ना ही लड़ बाय पाए तो अब शिया सुन्नी को डलवाना चाहते हैं अब पानी शरबत बिस्कुट और मूंग के दाल मोड

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भाग 15

6 अगस्त 2022
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हुजूर इन कानूनी बारीकियों में मत जाइए अन्याय अन्याय है अन्याय ग्रस्त औरत की जिंदगी तो मौत से बदतर होती है तुम ठीक कह रहे हो महमूद अली अदालत सीखी तो पूरी श्रेष्ठ कांप उठी नहीं मैं मुद्दों के अलावा जिद्

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भाग 16

6 अगस्त 2022
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नक्सलवाद का समर्थन कर रहे थे एक के बाद एक ताने कसे तो इमाम नाजिश बौखला गए और और बोले तब तुम भी हमसे कहां लगते अधीन तुम अमृता प्रीतम करतार सिंह दुग्गल मोहन राकेश भीष्म साहनी देवेंद्र सत्यार्थी और यहां

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भाग 17

6 अगस्त 2022
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और मार दो अपने ही सब सृष्टि की रचना की थी उसने अपने दादा अनु को आकाश का सम्राट बनाया था अपने पिता ऐसा को धरती का और तब माधुरी ने एक महा मंदिर बनाया था कि आकाश के देवता और ईश्वर जो उसकी प्रजाति धरती पर

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भाग 18

6 अगस्त 2022
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जी शायद आप मुझे ठीक ही पहचान रहे हैं सलमा की जान में जान आई मैं सीएसपी के जनाब आफताब अहमद की हूं  और हिंदुस्तान में रहती हूं वह मेरे नाना है सलमान ने कहा तब पुलिसवाला कुछ नाराज सा होकर काउंटर वाले से

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भाग 19

6 अगस्त 2022
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अदालत में क्या कह रहे हो तुम मैं तो कराची के होलीडे इन होटल के रेस्टोरेंट में बैठा हुआ था और सलमा से बातें कर रहा था हुजूर आपकी यादों की परछाई का नाम क्या है या तो मुझे नहीं मालूम पर आपके होंठ मिलता ल

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भाग 20

6 अगस्त 2022
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तब अजीब चीन से लौट आया था सलमा भी अपने नाना से मिलकर कोटा से लौट आई थी उसे उम्मीद नहीं थी कि इतने महीनों बाद भी सलमा उस पेपर नैपकिन पर लिखे पते पर फोन का नंबर को संभाल कर रखे गी पर उसने रखा था ना रखा

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भाग 21

6 अगस्त 2022
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नहीं नहीं तो या नीम की पत्तियां झड़ रही है ना हां पतझड़ का मौसम है ना नहीं या अंधेरे का मौसम है लगता है मेरा पति पति झड़ रहा है तो एक बात क्यों ना करें क्या हम न कुछ पूछे न जाने अपने रवा अति जिंदगी के

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भाग 22

13 अगस्त 2022
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बिस्तर उनका इंतजार कर रहा था वह भी  वह भी त्रियोबिश की  रेती की तरह साफ़ था। मेरे संपर्क से छूने से कुछ ऐसा तो नहीं जो तुमने जीवित होता हो और मेरा प्रतिकार करता हूं नहीं ऐसा भी कुछ नहीं सलमा ने बहुत गह

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भाग 23

13 अगस्त 2022
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जब अजीब और शर्मा कॉटेज से निकले तब भी नीले फूल खिले हुए थे। सलमा ने साड़ी पहनी थी बदन में बाकी फूल तो साड़ी और ब्लाउज के अंदर उन देशों की तरह समा गए थे । प्रभावों पर उन नीले फूलों की जो लेटर उतर आई थी

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भाग 24

13 अगस्त 2022
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वह मेरा बेटा ही सही पर मर्द हो जीने के लिए कहीं मुश्किल नहीं होता मैं एक रिश्तेदार की तरह आपको राय देता हूं कि बेहतर होगा कि आप अपने बेटे के साथ अपने नाना के पास पाकिस्तान लौट आए नईम ने कहा आप तो बिल्

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भाग 25

13 अगस्त 2022
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कुछ नहीं ऐसे लोग आकर यहां क्यों नहीं समझते कि मुसलमानों के नाम पर पाकिस्तानियों को बोलने का कोई हक नहीं है आज है हिंदुस्तान में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमानों पाकिस्तान से ज्यादा इस्लाम की समझने वाले ल

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भाग 26

13 अगस्त 2022
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सलमा और अधीन ने मजहब तो नहीं बदले पर उन्हें इस बात में मजा जरूर आने लगा या उनके लिए जैसे खेल की बात बन गई सबसे पहले तो उन्होंने जगह बदली वह पूरब की ओर भागे भागते भागते ब्लैक रिवर के घने जंगलों को पार

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भाग 27

13 अगस्त 2022
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वह आवाज बिजली की तरह तड़प और कड़क रही थी और अब वह कौन सी भी कमरे में खड़ी हो गई थी अजीब या कौन है डर से असहमति सलमानी उसके कंधे के पीछे छुपे हुए पूछा मैं चला दो आलमगीर औरंगजेब का जल्लाद मैं कोतवाल भी

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भाग 28

13 अगस्त 2022
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इस्लाम में हर कुदरती जरूरत के लिए जगह है लेकिन जब मजहब और सियासी फायदे के लिए नफरत में बदला जाता है तो एक नहीं तमाम पाकिस्तान पैदा होते हैं मेरी बच्ची तुम्हारी जिंदगी को इस गलत विभाजन ने तोड़ दिया है

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भाग 29

13 अगस्त 2022
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गहरी नहीं जरूरी अंग्रेजों और जिन्ना साहब ने सोचा ही नहीं था कि जब हिंदुस्तान नाम का मूल नसीब होगा तब मेरी जैसी एक सलमा कैसे तक्सीम होगी और वह अपनी इज्जत कहां  कहां तलाशग अदीब ने उसे बहुत प्यार से पुका

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भाग 30

13 अगस्त 2022
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तभी नूरजहाँ  उसका ध्यान नीचे मौजूद रियाया की तरफ दिलाया उधर देखिए हुजूर इतने दिनों बाद आप बाहर निकले आपकी रे आया आपके दीदार के लिए उम्र पड़ी है तभी भीड़ ने पुरजोर आवाजें का आने लगी बादशाह सलामत जिंदाब

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भाग 31

13 अगस्त 2022
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मुझे जाना चाहिए वक्त आप को माफ नहीं करेगा और फिर आपको भी वक्त की बरात बर्बादी का मलाल कठोरता रहेगा सारा शगुफ्ता देखिए आपके अर्दली साहब बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे हैं चलने से पहले एक यशपाल दरख्वास्त

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भाग 32

13 अगस्त 2022
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मैंने कोई निमंत्रण बाबर को नहीं भेजा था राणा सांगा नितेश में कहा तुम्हारा वह दावत नामा मेरी तिवारी बाबरनामा में दर्ज है और वह दस्तावेज आज का नहीं सोलवीं सदी का है अगर या गलत है तो तुमने तब क्यों नहीं

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भाग 33

15 अगस्त 2022
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 या गलत है हमारी गलती से विभाजन तो एक सच्ची घटना में तब्दील हो गया था पर विभाजन के भयानक दौर में भी सिंध में मारकाट नहीं हुई हमने मन ही मन अपनी ऐतिहासिक गलती मंजूर करते हुए बहुत भरे दिल से अपने हिंदू

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भाग 34

15 अगस्त 2022
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मुसलमान का था मीरा का था कबीर का था नाना कोटा कोलकाता सुब्रमण्यम भारती और नज़रुल इस्लाम कथा संत रैदास के और ज्ञानेश्वर का था किसका खुदा नहीं था लेकिन इंक इकबाल ने खुदा के मस्जिदों में कैद कर देने का प

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भाग 35

15 अगस्त 2022
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और आपकी सलमा जो खुदा हाफिज कह कर चली गई है इस अहम अदालत का कारोबार रोक कर आपको फिर अपने लिए हासिल करने की कोशिश में लगी है और उधर आपके दोस्त भवानी सिंह उप ईरान की राजधानी तेहरान से लौटकर कुछ जरूरी बात

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भाग 36

20 अगस्त 2022
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हुजूर हमसूफी है इस पागल शहंशाह ने हुजूर पैगंबर के जन्मदिन पर गाए जाने वाले हम हमारे भजनों पर भी पाबंदी लगा दी तब हम सूफी संतों को उसके गुर्गे और दरोगा मिल जावा वाकर के खिलाफ गोलबंद होकर निकलना पड़ा इस

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भाग 37

20 अगस्त 2022
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मौका पाते ही सल्तनत के वजीरे खारी खारी जा राजा रघुनाथ को हटाकर या वादा किसी से मुसलमान को दिया जाए किसी हिंदू अफसर के नीचे मुसलमान को तैनात किया जाए और अब खुलकर इन काफिरों हिंदुओं को बता दिया जाए कि व

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भाग 38

20 अगस्त 2022
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यही कि जो मैंने किया वह गलत भी था वह सही भी था सर जमीन ए हिंद की नजर में मैंने बहुत कुछ गलत किया जो मुझे शायद नहीं करना चाहिए था लेकिन इस्लामी मिल्लत की नजर में जो कुछ मैंने किया वह शायद सही था ऑरेंज

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भाग 39

20 अगस्त 2022
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तभी इतिहास के करोड़ों पन्नों से चीखती हुई आवाज आने लगी औरंगजेब तुम जालिम हो तुमने पोस्ते का पानी पिला पिला कर मुराद को मारना चाहा जब वह तंदुरुस्त शहजादा अफीम के पानी से नहीं मारा तो तुमने उसे चला दो उ

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भाग 40

20 अगस्त 2022
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शिब्ली नोमानी बड़े जोश खरोश से बता रहे थे मजहब की शक्ति का अगर किसी ने पहली बार इस्तेमाल किया तो बस सिर्फ यही दिलेर आलमगीर था कहीं ऐसा तो नहीं कि औरंगजेब ने इस्लाम का सहारा अपनी कमजोरियों और जातियों क

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भाग 41

20 अगस्त 2022
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तुम लोग कहर की बात करते हो हम कयामत बरपा करेंगे और मिस्र में बाप कुछ भी नहीं जिंदा छोड़ेंगे जो इस्लाम से पहले का है हम उसे बराबर करके रहेंगे दूरदराज अमेरिका से आई वहां मिस्र का मूल्य से कुमार अब्दुल र

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भाग 42

20 अगस्त 2022
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या तेज भाई जारी थी कि लश्कर मंदिर के उत्तर पूर्वी तरफ अबू हज आज मंदिर से इमाम वाहिद मोहम्मद अपनी ने भय ग्रस्त आंखों से जाकर देखा यहीं इसी मस्जिद में अपने समय के सबसे बड़े विद्वान अबू हज्जाज दफन हैं जि

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भाग 43

20 अगस्त 2022
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इसीलिए पश्चिम वाले ईरान की इस्लामी क्रांति की को आत्मसात नहीं कर पाए अयातुल्लाह खोमेनी और इस्लामी क्रांति में ईरान जैसे सभ्यता संपन्न देश को फिर एक बार उसकी दूरी दे दी आज अपनी धुरी पर लौटकर ईरान अपने

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