अजीम फैजाबाद स्टेशन पर उतरा ही था कि वह धमाकेदार झापड़ उसके पड उसके पड़ा स्टेशन की दीवार पर लिखा हुआ नारा सामने खड़ा था बोला फैजाबाद आए हो तो पहले इसे पढ़ पढ़ो इसमें लिखा था कि अपने धर्म स्थानों का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान बजरंग दल तुम कहां से आए हो उसने नारे से पूछा मैं दिल्ली से आया हूं तुम कहां के रहने वाले हो मैं रहने वाला तो दिल्ली का हूं लेकिन मेरा जन्म गोरख आश्रम गोरखपुर में हुआ है नारे ने उत्तर दिया तुम फैजाबाद अयोध्या में कहां रहते हो मैं यही स्टेशन पर रहता हूं शहर ने नहीं जाते कभी-कभी जाता हूं जब हमारे जब से जात आते हैं और वैसे यहीं रहता हूं शहर के लोग मुझे पना नहीं देते इसलिए स्टेशन पर रहते हो जी हां ज्यादातर मैं मीर बाकी ताशकंद ई के घर जा रहा हूं ।
अभी तो आज्ञा दो लौटकर मैं तुम से ही बात करूंगा नारा खुदकुशी नारा खुद चीखने लगा अपने धर्म स्तनों का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान नहीं सहेगा हिंदुस्तान अजीब जब स्टेशन के बाहर आया तो रिक्शा और ऑटो वालों की भीड़ ने उसे घेर लिया उसने एक करिश्मा देखा वह नारा आसमान में बादलों की तरह को घुमाने लगा और कुछ ही देर में आधार जलने लगा और रेजगारी और नोटों की बारिश होने लगी आज इतना तेज था अंदर इतना तेज था कि रेजगारी और नोट अयोध्या की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं कुछ गिर पड़ते तो तो गरीबों के हाथ आ जाते बाकी उड़ते हुए सरयू की दिशा में बढ़ते जाते थे।
मीर बाकी के गांव सेंधवा पहुंचे से पहुंचने से पहले जब वह फैजाबाद की सड़कों से गुजरात उससे सब सामान्य सही लगा वह बाजार वही गहमागहमी और वहीं सामान्य जीवन बच्चों रिक्शा में लदे स्कूल जा रहे थे मुसलमान औरतें बुर्का पहने बाजारों में खरीद-फरोख्त कर रही थी या चूड़ियां पहन रही थी हिंदू मनिहार उनकी नाजुक कलाइयों में चूड़ियां पहना रहे थे और वर्गों का पल्ला उठाएं खुले मुंह के उनके सामने बैठी ही थी वह मनिहार उनके भाई चाचा मामा बाजार खाने पीने की चीजों और रेडीमेड पोशाकों से भरे हुए थे वहां ना हिंदू दुकानें थे ना ही मुसलमान दुकान है वहां सिर्फ दुकानें ही की गंदगी और भी उतनी ही जितनी कि पूरे हिंदुस्तान में वसा के सब वही जो सब पहनते थे। किसी दीवार ने नारा नहीं लगाया खून से नहाई या गोलियों की बौछार से सिद्धि हुई कोई दीवार कराते हुए अपनी कहानी सुनाने में नहीं आई और उसे इस बात से राहत मिली कि फैजाबाद की दीवारें अपने बच्चों की देखभाल कर रही थी वे जन्म घुट्टी बेच रही थी लाल तेल और दूध की बोतल ले बेच रही थी नौजवान उन दीवारों से मोटर साइकिल एयरटीवी खरीद रहे थे सुंदर औरतें होठों पर लाली और बेसन रेसिपी खरीद रहे थे नपुंसक लोग दीवारों में बैठे गुप्त रोगों के हकीम और दूसरे धन-धन आते जो उसके मर जाने की दवा खरीद फरोख्त कर रहे थे सब बच्चों के खिलौने 1718 और प्लास्टिक के खिलौने रबर की छोटी-छोटी चप्पले वही नीली हरी बदामी किसी की चप्पले महिलाओं ने दूध की बोतल है यह साफ करने में अलग-अलग नहीं बनाए थे।
उनकी जीवन भी एक से थे वैसे ही अपनी मां के हाथ खींच रहे थे और अपनी पसंद की दुकानों की ओर ले जाना चाहते थे सब उसी तरह पत्ते पर चार्ट खा रहे थे और पान खा के बुर्के वाली सुंदरियों के उसी तरह हल्के गुलाबी से रचित हुए थे जैसे गुड़हल के फूलों के उसे विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि वह तो कुछ और ही देखने आया था या सब देखकर वह उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी भागा भागा हुआ जनमोर्चा अखबार के दफ्तर में घुस गया यहां पूछने की यह सब उसने देखा है किसी चमत्कारी ताकत ने अपना माया जाल फैला रखा है क्या यही फैजाबाद है किसी दूसरे शहर में आ गया है क्योंकि यह तो फैजाबाद नहीं कोई तिलहर संवाद लगता है संपादक शीतला सिंह उसे हैरत से देखते रह गए वहां रुकना अजीब लग रहा था आता हुआ निकल पड़ा वह खूबसूरत मेरे पास से गुजर ही रहा था कि एक निहायत से पंजा हाथ में उसका का थाम लिया वह घबरा गया मुड़कर देखा तो देखता ही रह गया।
उसकी परदादी की तरह बूढ़ी और निहायत खूबसूरत एक औरत उसके सामने खड़ी थी उसके बाल चांदी की के थे चेहरे पर शरीर की लहरों जैसी झुर्रियां थी उस बूढ़ी ने पूछा नहीं पहचाना मैं फैजाबाद की बहू बेगम हूं मैं तो नहीं गई अपना फैजाबाद छोड़कर वह चला गया अपनी राजधानी भी लखनऊ उठा ले गया मैंने कहा जा तू ही मेरा अकेला बेटा नहीं है मेरे हजारों लाखों बैठे हैं मैं तो फैजाबाद नहीं छोडूंगी दादी आप रहती कहां है अरे तुझे नहीं इतना भी नहीं मालूम मैं इसी मकबरे में रहती हूं यही डब्लू हूं मैंने देखा कि तू यहां से गुजर रहा है तो सोचा कि तुझ से मिल लूं सदियों बाद या मन किया कि तुझे देख लूं तू अमीर खुसरो के खानदान से है ना अजीब है ना हां अम्मी जान अधिक हूं अमीर खुसरो एटा के थे मैं मैनपुरी का हूं 30 मील का फासला है 30 मील क्या होता है अभी तो सदियों का फासला तय करता है मेरे बेटे बाल्मीकि व्यास कालिदास कभी मीरा भी तो उसी खानदान के बुजुर्ग हैं जिसका तू बारिश है और इससे पहले कि वह कुछ भी बोले वह खुद ही बोलती गई।
मैंने तुझे देखते ही पहचान लिया तुलसीदास भी उसी खानदान का था खुश रहो तो एटा में रहता था पर तुलसीदास यही रहता था अयोध्या में तू भी यही रहे क्यों भटकता है गांव गांव सुबह-सुबह तू बैठ के लिख तेरा लिखा सदियों के पास जाएगा सब के पास जाएगा इस उम्र में तेरे माथे पर या लकीरे आंखों में धुआं और सांस में इतना गुबार कहां से भाग के आया है तू बाबा बता मेरे बेटे बता दादी वक्त कुछ ऐसा आन पड़ा है कि मैं कहीं चैन से बैठ नहीं पाता सोच नहीं पाता लिख नहीं पाता आजकल मैं खून से नहाता हूं और बंधु को गोलियां खाकर जिंदा रहता हूं अरे बेटे हां एक गोली मुझे भी लगी थी।
अरे पूछो इन कश्मीरियों मुजाहिद तीनों का मैंने क्या बिगाड़ा पर मेरा बेटा तू अपना ख्याल रख कोई राजा महाराजा बादशाह शाहजहां नेता प्रधानमंत्री अपने वक्त का जवाब नहीं देगा सब अच्छा या बुरा करके मर जाएंगे जवाब सिर्फ तुझे देना पड़ेगा या काम को देना पड़ेगा इसलिए तो अपना ख्याल रख मेरे बेटे तू अपना ख्याल रख इतना कहकर मैंने आशु पूछते हुए बहू बेगम हजरत हो गई जब मैं से अर्दली ने दस्तक दी आप अपना काम पूरा कीजिए क्या बहुत या अभी भूल गए आप अदालत भी करके किस लिए आए थे याद कीजिए और मीर बाकी के गांव का पता पूछिए।
उसने कहा और पास से गुजरते आदमी से पूछा आपको मीर बाकी के गांव का पता है कौन मीर बाकी और यह आवाज गूंजती चली गई कौन मीर बाकी कौन विभागीय उसने किसी से भी पूछा उसने यही जवाब दिया उसका पता जब भी नहीं मिला वह एक छापा खाने में घुस गया वहां सिर्फ दो ही चीजें छप रही थी और दया का रक्तरंजित इतिहास और चंदे की रसीद में रसीद बुकों के गट्ठर लग लग कर विद्या के मंदिरों में जा रहे थे ना कानों पर भीड़ लगी थी राम मंदिर समितियों भजन मंडलियों और न जाने किन किन दलों और परिषदों के एजेंट अपनी अपनी संस्था की रावण रेलवे मनीआर्डर से आए चंदे कोटा खाने से वसूल रहे थे आखिर अर्दली जेब से निकला और उसने अयोध्या का रक्तरंजित इतिहास पुस्तक में से वीर बाकी का पता खोज कर वह उसके आगे बढ़ा दिया सनी हुआ गांव मीर बाकी का गांव विवरण सामने था ।
फैजाबाद से 4 मील दूर गर्मी कच्चा रास्ता तेज होती हुई धूल किसी तरह का गांव के बीचो-बीच पहुंचा हूं कटा था खेत खाली पड़े थे खलिहान भरे हुए थे कच्चे पक्के घरों का गांव 1012 बच्चे खेल रहे थे कोई बड़ा और कोई बुजुर्ग नजर नहीं आया था उसे लोग जूते उतारकर मजार के ऊंचे आंगन में चढ़ गए अभी वह फिल्मिंग शुरू हुई करने वाले थे कि पिछले गली से एक भीड़ दौड़ती हुई आ पहुंची और चीखने चिल्लाने लगी आप लोग हमारे भारत में आग लगाने आए हैं या एक मौलवी नुमा अधेड़ की आवाज थी आप बिना पूछे ऊपर चढ़े कैसे इजाजत किससे ली हां कौन आप है नीचे उतरी है आखिर आपका मकसद क्या है।
यह गांव आपका है कि मुंह उठाए और गोसाई चीखती चिल्लाती फिर किसी क्षण काबू बेकाबू हो सकती कोई भी एक भी उठा कर फेंक देता तो पथराव शुरू हो जाता अभी बहुत गर्मी से उस भीड़ को शांत करने की कोशिश कर रहा था पर कोई कुछ गांव के नौजवानों का एक गोली हमदम संभालता कुर्ते पहनता भी शामिल हो जाता चुनाव काफी बढ़ गया था तभी दो फरिश्ते बीच में आकर खड़े हो गए उन दोनों रूपों में से एक ने पहचाना अरे भाई अपने शीतला से बाबू हैं जनमोर्चा वाले कौन गलत काम नहीं करिए शांत खामोश इस चिलचिलाती धूप में या चमत्कार हुआ कि सारे लोग थे और गुस्से को ठोकर आसपास जमा हो गए जानना चाहते कि वे लोग सब लोग किस काम से आए हैं शीतला सिंह उन्हें सारा मकसद बताया तो वही मौलवी महादेव सामने आए बताने लगे अब बात है साहब हम यहां चैन से रहते हैं पूरा गांव मुसलमान का है।
इसमें सिया भी है उसमें भी है आप क्या है मेरी परचून की दुकान है मैं इसी मस्जिद के पास इमाम में हूं यहां कोई मीर बाकी नहीं रहा ना उसका खानदानी कोई है यहां है यहां तो मजार किसका है बॉस ने पूछा लिया हमारे समूह सामने वाले उनके बुजुर्ग रहे और हम सब गांव वालों में उनके बुजुर्ग मानते हैं उनकी मजार है मीर बाकी का मजार औरों की मजार इतनी मामूली होगी हो सकती है या आग लगाए लगाए दी है गलत तारीख लिखवाने वालों और दिल्ली के अखबारों में यहां आए तस्वीरें उतारी जा कर लिख दी मीर बाकी की कवर की मस्जिद ओके मस्जिद बनवाई मस्जिद सालन की टांग तोड़ देनी चाहिए।