गहरी नहीं जरूरी अंग्रेजों और जिन्ना साहब ने सोचा ही नहीं था कि जब हिंदुस्तान नाम का मूल नसीब होगा तब मेरी जैसी एक सलमा कैसे तक्सीम होगी और वह अपनी इज्जत कहां कहां तलाशग अदीब ने उसे बहुत प्यार से पुकारा था मैं तुम्हारे साथ सलमा और सोहराब के साथ मम्मा बनकर जी सकूंगी तुम्हारे पास से लोड कर जब मैं अपने घर की सीढ़ियों पर खड़ी होंगी तो ताला खोलकर तीर की तरह भीतर जाऊंगी अपने कपड़े बदलूंगी ताकि वह उनसे तुम्हारे महकना ना रहे कपड़े बदल कर शराब की मम्मी बन जाऊंगी अपने को समझ आऊंगी कि यही यही सच है लेकिन मेरी सचिन दुस्तान और पाकिस्तान की तरह विभाजित ही रहेगा शायद यही हिंदुस्तान मुसलमान औरत का नसीब बन गया औरत यहां की हो या वहां कि वह पहले भी आधी ही कम थी इस तक्सीम ने तो उसे आधे से भी आधा बनने पर मजबूर कर दिया शर्मा बड़ी तकलीफ से बोल रही थी और गुलदान से गिरी फूलों की पत्तियों की विनती जा रही थी बीच-बीच में खामोशी आकर खड़ी हो जाती थी अभी अपने साइड कैबिनेट में रखी किताब उठा ली थी उसके सफेद कौन सी किताब है सलमान ने पूछा किताब देकर अभी बोला बाइबल है खुद के लिए इन किताबों को बंद कर दीजिए।
वही तो नहीं पता हर पल हर कदम हर करवट हर सांस का पीछा वही समझी करती है तो सिर्फ इन लाइनों का सहारा लीजिए कौन सी लाइन में धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो जिंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो और वेल्लायनी गूंजती रहीं सलमा उठी और जाकर खुले समंदर की तरफ वाली कांच की दीवार के परदे हटा कर हिंद महासागर को देखती रही अजीब भी उनके पास जाकर खड़ा हो गया वे दोनों समुंदर को देखते रहे तभी सागर की लहरों डराते वृक्ष पर एक समुद्री बेड़ा धीरे धीरे बढ़ता दिखाई दिया फिर एक और बढ़ाओ प्राकृतिक और व्याख्या अजीत शर्मा ने पूछा या शायद समुद्री डाकुओं के बड़े हैं या कहां जा रहे हैं पूरब की तरफ हिंद महासागर को चीरते हुए धीरे लगातार पूरब की ओर बढ़ रहे थे।
मारीशस तब तक एक कुंवारा टापू था वहां लंगर डालने की सुविधा नहीं थी पुर्तगाली बड़े-बड़े उत्तर पूर्व की ओर निकलना चाहते थे दक्षिण अफ़्रीका में वास्कोडिगामा को एक हिंदुस्तानी मछुआरा मिला दिल मिल गया था वह उसकी रहनुमाई में हिंदुस्तान की ओर बढ़ा चला था दक्षिण में पहली बार मारीशस के तट पर लंगर डाले थे फ्रांसीसी और इंग्लिश तानी बीड़ी मारीशस के नीचे से होते हुए हिंदुस्तान के तटों पर पहुंचने की जल्दी में थे यह सभी बड़े धन दौलत की तलाश में निकले थे या नई दुनिया की तलाश करने वाले खगोल शास्त्रियों के बड़े नहीं थे याद धर्म व्यापारी और निवेशकों और अर्जुन लुटेरों के बेटे थे जो एक दूसरों के हितों से टकराते अपने अपने भविष्य को और धन संपदा की तलाश में थे ।
कोलंबस भी भारत की तलाश में निकला था पर वह आप अमेरिका के तट पर जा लगा था अगर या खगोल शास्त्रियों के होते तो दुनिया की तलाश में एक दूसरे के सहयोगी होते लेकिन ऐसा नहीं यह सब एक दूसरे के विरोधी थे और इनमें आपस में समुद्री और जमीनी भी लगातार होते रहते थे इतिहास बता रहा था या आंख खोलती 17 वी सदी का वह दौर था जब भारत और चीन के क्षेत्र में कुल पृथ्वी का तीन चौथाई औद्योगिक उत्पादन होता था भारत केवल कृषि प्रधान देश नहीं था उसके मसाले वस्त्र कास्ट शर्मा जी उत्पादन की विशेषता और गुणवत्ता विश्वविख्यात थी तब यूरोप के देश विकासशील थे उनके सौदागर भारत और चीन तक पहुंचने में स्थल और जलमार्ग तलाश रहे थे ऐसे ही दौर में अंग्रेज व्यापारी थॉमस हीरो शहंशाह जहांगीर के दरबार में हाजिर हुआ वक्त सुबह का था जहांगीर नूरजहां और महल सैनिक आवास मौजूद थे ।
जिले में कुछ ही दूरी पर कुरान की खलीफा वह साथ नुमाइंदे भी मौजूद थे जो कई दिनों से शहंशाह के हुजूर में हाजिरी किए जाने की परीक्षा में थे दूसरी तरफ चुनिंदा व्यापारियों का एक दल दूसरे मुल्कों से हुई तिजारत का हिस्सा किस हिसाब किताब देने के लिए हाजिर था दूसरी तरफ सल्तनत के आला अफसर मौजूद थे जो विद्यार्थी रास्तों की देखभाल किया करते थे सड़कों को साफ चौकस रखना चरणों की मरम्मत करवाना और नई बना गांव को बनवाना भी इन्हीं अक्षरों की जिम्मेदारी थी क्योंकि एक जमात के साथ रहती थी जो आप आने वाले कार्य हवाओं की गिनती रखी थी और मालूम मामूली सा मशहूर वसूली करती थी या मशहूर कारवां में मौजूद ऊंट ऊंट गाड़ियों और खतरों की तादाद मुताबिक तय होता था दूरदराज के देशों से आए व्यापारियों के सुस्ताने के लिए छायादार खेलो जगह जगह मौजूद थे पानी के जोड़ों की कमी नहीं साथ में एक खास फौजी दस्ता विदेशियों व्यापारियों के रेशम सड़क की सरहद तक हिफाजत के लिए पहुंचता तैनात रहता था ।
इसीलिए विदेशी उसे आए व्यापारी खुद को अपने माल तुम्हें भुज महफूज पाते थे अपनी सुरक्षा दस्ते के होते जिन्हें शरद पर रुकना पड़ता था हिंदुस्तानी सुरक्षा दस्ते व्यापारियों को शरद के ठिकानों तक पहुंचा कर उसके दोस्तों को सपोर्ट कर देते व्यापार के चौतरफा व्यवस्था के सुचारु संचालन की पूरी जानकारी संस्था के सामने पेश की जाती थी रेशम सड़क का दरोगा और भी बादशाह सलामत के सामने पेश होने के इंतजार में था इतिहास पुरुष ने बताया शहजादी की बीमारी के कारण शहंशाह है आलम मिलने वालों को वक्त नहीं दे पा रहे थे लेकिन आजम उम्मीद बंधी थी शहजादी से आप हुई थी ।
तभी किले में बुर्ज पर से जो जहांगीर ने उगले उगले सूरज को देखकर इबादत में सिर झुकाया जिसे खरीदी आया भी भीड़ शाहजहां सलामत जिंदाबाद के नारे लगाने लगी पीछे कहीं किसी मंदिर से सूर्य स्त्रोत की धूनी भूखी तब जहांगीर ने मुझसे कहा कितनी खूबसूरत मंजर है हमारे वालिद शहंशाह अकबर इस झरोखे में खड़े होकर उदित होते सूर्य को हमेशा स्वागत किया करते थे उन्होंने यह रस्म हमारी वाल्दा जोधाबाई से पाई थी उसे सूरज को सलाम करना और डूबते सूरज के साथ विदा करना या तो हमारी हिंदुस्तानी परंपरागत ऊर्जा ने कहा इन बातों की भनक से नूरानी खलीफा के नुमाइंदों के पीछे और पड़ गई एक आस्था से कहा सुनी या बातें इस्लाम होते हुए भी इन हिंदुस्तानी भाषाओं के नक्शा बदल रहा है हां बेगम या यही बनते हुए हिंदुस्तान की नई तहजीब का नक्शा है जहां कुदरत की तरफ कदम रीति रिवाज और महेश मौजूद है यहां के मजहब कुदरत की उस कोख से निकलते हैं जो हमें मौसम देती हैं मौसम के साथ-साथ अन्य देती हैं यहां के मजहब हमें कुदरत के साथ साथ रखते हैं ।