या गलत है हमारी गलती से विभाजन तो एक सच्ची घटना में तब्दील हो गया था पर विभाजन के भयानक दौर में भी सिंध में मारकाट नहीं हुई हमने मन ही मन अपनी ऐतिहासिक गलती मंजूर करते हुए बहुत भरे दिल से अपने हिंदू भाइयों को विदाई दी थी सिंध से जो भी हिंदू निकला वह जान-माल और इज़्ज़त समेत इतना सुरक्षित निकला कि अपना पालतू तोता एक पिंजरे समेत लेकर भारत गया उन हिंदू भाइयों के साथ हिंदी मुसलमानों में कोई बदसलूकी नहीं की बदसलूकी अगर की तो सिंध में बसने वाले पंजाबी मुसलमानों ने वह पंजाबी मुसलमान तब भी जाहिल थे आज भी उनकी जहालत कमतर नहीं है ।
हम सिंधी तब भी उनसे लड़ रहे थे और आज भी लड़ रहे हैं हम आरी लड़ाई उनसे हाय हम मजहब के लिए नहीं अपनी संस्कृत के लिए लड़ रहे हैं या बयान तो भड़काने के लिए है लेकिन मसला दूसरा है सवाल वाले पत्थर ने जुमला खड़ा किया मामला या है कि विभाजन के वक्त हमारे सिंधु में सिर्फ 11 परसेंट गैर सिंधी थे हिंदू तो तब तेरा लाख ही भागे थे पर हमारी छाती पर आज जो 48 फ़ीसदी गैर सिंधी आकर बैठ गए इनसे हमें अब जिंदगी भर लड़ना है यानि तुम कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तान के बानी शायर अल्लामा इकबाल की विरासत से लड़ना चाहते हो सवाल वाले पत्थर ने करवट बदल कर पूछा वह विरासत ही नहीं वह तो मजहब के नाम पर लूट आ गया सिर्फ एक इलाका है ।
जिसे मुल्क कहा गया या मुल्क तो टूटेगा टूट कर रहेगा इसे दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा सकती जिन्ना की कमजोरी माउंटबेटन की साजिश धर्म परिवर्तन शायर इकबाल की कुंठाओं की वजह से वह सारा खून खराबा हुआ । जिंदा अपने आपको तिवारी में अमर करना चाहता था उसकी हवस किस कीमत पर पूरी हुई है वह सबके सामने है इकबाल शायर बड़ा था लेकिन अपने हिंदू खून को संभालना संभालना पाने और उससे विद्रोह के कारण वह बहुत बड़ा बेहूदा और पाखंडी आगे बढ़ गया था ।
सैयद साहब माफी चाहूंगा एक बाल जैसे बड़े शायर के बारे में यहां अदालत आपके बेहूदा अल्फाज बर्दाश्त नहीं करती मैं माफी चाहता हूं अदिव्या लिया मैं अदालत को बाहर बंदगी करता हूं मुझे मालूम नहीं था मैं एक अजीब की अदालत के सामने हूं मुझे तो यही पता है मैं 38 साल बाद भारत आया हूं और दिल्ली के कनेक्ट होटल के अपने कमरे में बालकवि बैरागी और रामेश्वर मंदिर खा के साथ बैठा हूं गुलाम मुर्तजा वा सैयद ने अदब से कहा सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले लोगों का कुछ भी नहीं या अपना नहीं होता वह लोग हमेशा व काम की अदालत में हाजिर समझे और माने जाते हैं ।
उनके व्यक्तिगत विचार अगर उनके सार्वजनिक विचारों से मेल नहीं खाते तो ऐसे लोगों को या नैतिक अधिकार नहीं विशाल लिक जीवन के क्षेत्र में रहे अजीब ने कहा लेकिन हुजूर मैंने अपने विचार कहां बदले आप विचार और राय में तो फर्क करेंगे मेरे व्यक्तिगत और सार्वजनिक विचारों में मतभेद नहीं पर शायर इकबाल ने तो अपनी शायरी के साथ जिंदा किया आप किसी शायर ने पहले कहा था कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा उसी ने अपनी लाइनों को बदल कर क्या एक शायर की नैतिकता चुनौती नहीं दी थी आपका वही इकबाल पलट कर बोला चीनी अरब हमारा हिंदुस्तान हमारा मुस्लिम है । हम वतन हैं सारा जहां हमारा हुजूर मैं जानना चाहूंगा या कौन सी और कैसी शायराना नैतिकता है क्या आप जैसे जीवों और शायरों की कोई नैतिकता नहीं है कि आप किसी अदालत में हाजिर और जवाब दे नहीं मानते हैं ।
1 मिनट के लिए अदालत खामोश होकर अर्दली और सारा शगुफ्ता से मशवरा करने लगा मशवरे के बाद अर्दली चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया तब अजीब ने कहा सैयद साहब हर व्यक्ति की एक अदालत है अपनी अदालत से कोई मुक्त नहीं है चाहे वाजिब की हो क्यों ना हो लेकिन या अदालत उन लोगों पर चल रहे मुकदमों की अदालत है जिनकी इंसानी आत्माएं उनके जीते जी चल बसी थी या चल बसी हैं या चल बसेगी और जो अपने दौर के या अगले दौर के या ना आने वाले दौर के आदमी को जिंदगी उसकी सोच के राहत से जीतने के लिए खतरा बन गए या बन सकते हैं ।
अजीब ने बड़े गहरे अंदाज में कहा तो अर्दली बिना आवाज किए अदालत ताली बजाने लगा तो हुजूर मैं तो सिर्फ तो उसी खतरे की बात कर रहा हूं सोच का खतरा ही तो जिंदा और इकबाल ने पैदा किया था मुझे इंकलाब की शायर की शख्सियत से कुछ लेना-देना नहीं लेकिन शायर भी तो वही होता है जो दुनिया के रूहानी दर्द को समझता है जो शायद दर्द के दरिया में दूसरों को मारने के लिए डूबा देवा शायर कैसा आखिर सैयद साहब माफी चाहूंगा एक बाल जैसे बड़े शायर के बारे में यहां अदालत आपके बेहूदा अल्फाज बर्दाश्त नहीं करती मैं माफी चाहता हूं अदिव्या लिया मैं अदालत को बाहर बंदगी करता हूं ।
मुझे मालूम नहीं था मैं एक अजीब की अदालत के सामने हूं मुझे तो यही पता है मैं 38 साल बाद भारत आया हूं और दिल्ली के कनेक्ट होटल के अपने कमरे में बालकवि बैरागी और रामेश्वर मंदिर खा के साथ बैठा हूं गुलाम मुर्तजा वा सैयद ने अदब से कहा सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले लोगों का कुछ भी नहीं या अपना नहीं होता वह लोग हमेशा व काम की अदालत में हाजिर समझे और माने जाते हैं उनके व्यक्तिगत विचार अगर उनके सार्वजनिक विचारों से मेल नहीं खाते तो ऐसे लोगों को या नैतिक अधिकार नहीं विशाल लिक जीवन के क्षेत्र में रहे अजीब ने कहा लेकिन हुजूर मैंने अपने विचार कहां बदले आप विचार और राय में तो फर्क करेंगे मेरे व्यक्तिगत और सार्वजनिक विचारों में मतभेद नहीं पर शायर इकबाल ने तो अपनी शायरी के साथ जिंदा किया आप किसी शायर ने पहले कहा था कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा उसी ने अपनी लाइनों को बदल कर क्या एक शायर की नैतिकता चुनौती नहीं दी थी आपका वही इकबाल पलट कर बोला चीनी अरब हमारा हिंदुस्तान हमारा मुस्लिम है हम वतन हैं सारा जहां हमारा हुजूर मैं जानना चाहूंगा या कौन सी और कैसी शायराना नैतिकता है क्या आप जैसे जीवों और शायरों की कोई नैतिकता नहीं है कि आप किसी अदालत में हाजिर और जवाब दे नहीं मानते हैं 1 मिनट के लिए अदालत खामोश होकर अर्दली और सारा शगुफ्ता से मशवरा करने लगा मशवरे के बाद अर्दली चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया तब अजीब ने कहा सैयद साहब हर व्यक्ति की एक अदालत है ।
अपनी अदालत से कोई मुक्त नहीं है चाहे वाजिब की हो क्यों ना हो लेकिन या अदालत उन लोगों पर चल रहे मुकदमों की अदालत है जिनकी इंसानी आत्माएं उनके जीते जी चल बसी थी या चल बसी हैं या चल बसे ंगी और जो अपने दौर के या अगले दौर के या ना आने वाले दौर के आदमी को जिंदगी उसकी सोच के राहत से जीतने के लिए खतरा बन गए या बन सकते हैं अजीब ने बड़े गहरे अंदाज में कहा तो अर्दली बिना आवाज किए अदालत ताली बजाने लगा तो हुजूर मैं तो सिर्फ तो उसी खतरे की बात कर रहा हूं सोच का खतरा ही तो जिंदा और इकबाल ने पैदा किया था मुझे इंकलाब की शायर की शख्सियत से कुछ लेना-देना नहीं लेकिन शायर भी तो वही होता है जो दुनिया के रूहानी दर्द को समझता है जो शायद दर्द के दरिया में दूसरों को मारने के लिए डूबा देवा शायर कैसा आखिर बुल्ले शाह और कबीर भी तो शायर थे लेकिन इकबाल ने जो ने तो खून का दरिया भाया मुसलमानों का खुदा बना कर रख दिया एक बाल से पहले खुदा सबका था हिंदू का था ।